"कचरा चढ़ाने वाली महिला से भी भगवान हुए प्रसन्न"
किसी समय में एक बुढ़िया ऐसी थी, जो कुछ उसके पास होता, सब कुछ परमात्मा पर चढ़ा देती थी।
यहां तक कि रोज सुबह अपने घर का जो कचरा निकलता था, वह भी मंदिर जाकर भगवान की ओर फेंक देती और कहती थी कि "तेरा तुझको ही समर्पित"।
गांव के लोगों ने जब ये सुना तो उन्होंने कहा कि ये तो हद हो गई। फूल चढ़ाओ, मिठाई चढ़ाओ, लेकिन भगवान को कचरा कौन चढ़ाता है?
जब एक फकीर उस गांव से गुजरा तो उसने भी एक दिन यही देखा कि बुढ़िया मंदिर की ओर गई और भगवान की ओर कचरा फेंककर कहा- हे भगवान, तुझको ही समर्पित।
उस फकीर ने कहा कि बाई, ठहरो, मैंने बड़े-बड़े संत देखे हैं, तूम ये क्या कह रही हो?
बुढ़िया ने भगवान की ओर इशारा करके कहा, मुझसे मत पूछो, उससे ही पूछो। जब मैंने सब कुछ उसे दे दिया तो कचरा क्यों बचाऊं? मैं ऐसी नासमझ नहीं हूं।
उस रात फकीर ने एक सपना देखा कि वह स्वर्ग में है और परमात्मा के सामने खड़ा है। स्वर्ण के सिंहासन पर परमात्मा विराजमान हैं। सुबह हो रही है, पक्षी गीत गाने लगे और तभी अचानक एक टोकरी भर कचरा सीधा भगवान को आकर लगा।
फकीर ने परमात्मा से कहा कि यह बाई एक दिन भी नहीं चूकती। फकीर ने कहा कि मैं जानता हूं इस बाई को। कल ही तो मैंने इसे देखा था और कल ही मैंने उससे कहा था कि यह तू क्या करती है?
फकीर करीब सप्ताह भर स्वर्ग में रहा। और रोज कचरा भगवान को सीधा लगता रहा।
जब फकीर से रहा नहीं गया तब उसने भगवान से पूछा कि प्रभु आपको फूल चढ़ाने वाले लोग भी हैं, रोज सुबह से पेड़ों के फल तोड़ते हैं, घर के आसपास से फूल तोड़कर आपको चढ़ाते हैं, लेकिन उनके सभी फल फूल तो यहां दिखाई नहीं दे रहे हैं ? पर यह कचरा नियमित रूप से आप पर चढ़ता रहता है, ऐसा क्यों ?
भगवान ने उस फकीर से कहा:- जो आधा-आधा चढ़ाता है, उसका मुझ तक पहुंचता ही नहीं है। इस महिला ने अपना सब कुछ मुझे चढ़ा दिया है। ये कुछ भी अपने पास कुछ भी बचाती नहीं है, जो कुछ है सब चढ़ा दिया है। जो सब कुछ मेरा ही है यह जान कर,मान कर मुझे ही समर्पित कर देता है, वह मुझ तक कैसे ना पहुंचे।।
🌹🙏🏻🌹
श्री गीता जी , अध्याय 15 श्लोक 19:
यो मामेवमसंमूढ़ो जानाति पुरुषोत्तमम् । स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।।15.19।।
अनुवाद : हे भारत इस प्रकार जो संमोहनरहित पुरुष मुझ पुरुषोत्तम को जानता है, वह सर्वज्ञ होकर सम्पूर्ण भाव से अर्थात् पूर्ण हृदय से मेरी भक्ति करता है।।(१५.१९)
Arjuna, the wise man who thus realizes Me as the Supreme Person,—knowing all, he constantly worship Me (the all-pervading Lord) *with his whole being.* (15.19)
🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹