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Saturday, June 25, 2022

नाम जाप महिमा

भगवन्नाम ऐसा है कि इससे क्षणमात्र में त्रिविध ताप नष्ट हो जाते हैं। हरि-कीर्तन में प्रेम-ही-प्रेम भरा है। इससे दुष्ट बुद्धि सब नष्ट हो जाती हैं और हरि-कीर्तन में समाधि लग जाती है।"

श्री तुलसीदासजी कहते हैं-

नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।
नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है।

नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं। करहु बिचारू सुजन मन माहीं।।
नाम लेते ही संसार समुद्र सूख जाता है। सज्जनगण! मन में विचार कीजिए कि दोनों में कौन बड़ा है (नाम या समुद्र)

बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू।।
वेद, पुराण और संतों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल राम नाम में प्रेम होना है।

'बृहन्नारदीय पुराण' में कहा हैः 
संकीर्तनध्वनिं श्रुत्वा ये च नृत्यन्तिमानवाः। तेषां पादरजस्पर्शान्सद्यः पूता वसुन्धरा।।
'जो भगवन्नाम की ध्वनि को सुनकर प्रेम में तनमय होकर नृत्य करते हैं, उनकी चरणरज से पृथ्वी शीघ्र ही पवित्र हो जाती है।'

'श्रीमद् भागवत' के अन्तिम श्लोक में भगवान वेदव्यास जी कहते हैं-

नामसंकीर्तन यस्य सर्वपापप्रणाशनम्।
प्रणामो दुःखशमनस्तं नमामि हरिं परम्।।

'जिन भगवान के नामों का संकीर्तन सारे पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है और जिन भगवान के चरणों में आत्मसमर्पण, उनके चरणों प्रणाम सर्वदा के लिए सब प्रकार के दुःखों को शांत कर देता है, उन्हीं परमतत्त्वस्वरूप श्रीहरि को मैं नमस्कार करता हूँ।'

एक बार नारदजी ने भगवान ब्रह्माजी से कहाः 
"ऐसा कोई उपाय बतलाइये जिससे मैं विकराल कलिकाल के जाल में न आऊँ।" 

इसके उत्तर में ब्रह्माजी ने कहाः
आदिपुरुषस्य नारायणस्य नामोच्चारणमात्रेण निर्धूत कलिर्भवति।

'आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चार करने मात्र से ही मनुष्य कलि से तर जाता है।'   
(कलिसंतरणोपनिषद्)

'पद्म पुराण में आया हैः
ये वदन्ति नरा नित्यं हरिरित्यक्षरद्वयम्।
तस्योच्चारणमात्रेण विमुक्तास्ते न संशयः।

'जो मनुष्य परमात्मा के दो अक्षरवाले नाम 'हरि' का उच्चारण करते हैं, वे उसके उच्चारणमात्र से मुक्त हो जाते हैं, इसमें शंका नहीं है।

*श्रीमद्भागवत षष्ठम स्कन्ध से -* 
बहुत सुन्दर प्रश्न है ,यदि हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ती का कोई उपाय है?

महाराज राजा परीक्षित जी ने ,श्री शुकदेव जी से ऐसा प्रश्न किया कि.. 
🌺 अनजाने में किये हुये पाप का प्रायश्चित कैसे होता है??? 🌺
बोले - भगवन आपने पञ्चम स्कन्ध में जो नरको का वर्णन किया ,उसको सुनकर तो गुरुवर रोंगटे खड़े जाते हैं। प्रभूवर!! मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ की यदि कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं , जैसे चींटी मर गयी, हम लोग स्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं ,उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं और भी ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं। तो उन पापों से मुक्ती का क्या उपाय है भगवन ?

आचार्य शुकदेव जी ने कहा -राजन ऐसे पाप से मुक्ती के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए ।

महाराज परीक्षित जी ने कहा - भगवन एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है तो सोचना पड़ता है ।आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं। 

आचर्य जी बोले:- 
 राजन! पहले मैं पाँचों यज्ञ विस्तार से बताता हूँ,सुनिये - 

पहला यज्ञ है -जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के लिए निकाल देना चाहिए ।

दूसरा यज्ञ है राजन -चींटी को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ों के पास डालना चाहिए।

तीसरा यज्ञ है राजन्-पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए ।

चौथा यज्ञ है राजन् -आटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियो को डालना चाहिए ।

पांचवां यज्ञ है राजन् भोजन बनाकर अग्नि भोजन , रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमे घी शक्कर मिलाकर अग्नि को भोग लगाओ। राजन् अतिथि सत्कार खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे। राजन् ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ती मिल जाती है । हमे उसका दोष नहीं लगता । उन पापो का फल हमे नहीं भोगना पड़ता।

राजा ने पुनः पूछ लिया -
भगवन यदि गृहस्थ में रहकर ऐसे यज्ञ न हो पावे तो और कोई उपाय हो सकता है क्या ??

तब यहां पर आचार्य शुकदेव जी हम सभी मानव के कल्याणार्थ कितनी सुन्दर बात बता रहे हैं। 

श्री शुकदेव जी कहते हैं....राजन्!!

कर्मणा कर्मनिर्हांरो न ह्यत्यन्तिक इष्यते।अविद्वदधिकारित्वात् प्रायश्चितं विमर्शनम् ।।

नरक से मुक्ती पाने के लिए कई तरह के प्रायश्चित हैं। कोई व्यक्ति तपस्या के द्वारा प्रायश्चित करता है। कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित करता है। कोई व्यक्ति यम,नियम,आसन के द्वारा प्रायश्चित करता है।

लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ राजन!

केचित् केवलया भक्त्या वासुदेव परायणः।।

केवल हरी नाम संकीर्तन में ही जाने अनजाने में किये हुए पापों को नष्ट करने का सामर्थ्य है । 

इस लिए हे राजन् ! सुनिए :-

🌺स्वास स्वास पर कृष्ण भजि बृथा स्वास जनि खोय।🌺
🌺न जाने या स्वास की आवन होय न होय।। 🌺

अर्थात-
किसी को यह भी पता नही की जो स्वास अंदर जा रही है वो लौट कर वापस आएगी की नही। इस लिए सदैव, हर सांस पर मन ही मन हरी का नाम जपते रहो।


🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹