अष्टावक्र गीता
पंद्रहवां अध्याय, अठारहवाँ सूत्र -
18th verse of 15th Chapter from Ashtavakra Geeta
न ते बन्धोऽस्ति मोक्षो वा कृत्यकृत्यः सुखं चर॥१५- १८॥
As how I see..(साधक प्रयास)
यह फिर एक कामना है,
#सबसे शक्तिशाली, सबसे बड़ी माया,#
जिसमें हम अपना लोक ही नहीं परलोक भी बांध लेते हैं।
हम मुक्त ही हैं, साक्षी स्वरुप हैं और संसार के चक्रव्यूह का एक हिस्सा हैं।
बस अपने preallocated duties को unattached हो कर करते चलें। अगर आप भविष्य वक्ता चुने गए हैं, भविष्य बांचे यही thread है आपका,जो आपके द्वारा इस संसार में जा रहा है। आज त्याग दोगे तो कल अपने remaining इसी कर्म को पूर्ण करने फिर जन्म होगा।
ना कुछ ग्रहण करने को है ना त्यागने को,
जो ग्रहण हुआ यहीं से हुआ है, यहीं देना है,
#यहीं रह ही जायेगा# ,
फिर त्याग ??
जो अपना है ही नहीं उसका त्याग क्या ?
और कैसे ?
🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹