Sanatan Dharm
Religion or Life style
Formation and it's importance
Question raised by one of the most inquisitive group member:
कोई बता सकता है कि धर्म की स्थापना किसने की। सनातन यदि धर्म नहीं है तो सनातनी हिंदू ही क्यों है ?
कोई बता सकता है कि धर्म की स्थापना किसने की। सनातन यदि धर्म नहीं है तो सनातनी हिंदू ही क्यों है ?
Can one explain who established Sanatan Dharm and if Sanatan is not a religion then why only Hindus are Sanatan ?
Amazing question, wonderful thinking...(though relic)...
The subject is so interesting that couldn't hold not to write about it. Though the subject is very vast and I am too small to define...still would like to try
Please read/ take the article written below in the spirit of gaining spiritual knowledge, no malice towards any one.
"आपने करी धर्म की स्थापना"।।
क्योंकि यह system, कालचक्र ही ऐसा रचित है की पूर्व याद नहीं रहता, और हम पूर्व से सीखना तो नहीं पर जुड़े रहना चाहते हैं। महादेव ने माता पार्वती को अमर कथा सुनाई जो दो कबूतरों ने भी सुनी और अमर हो गए जो आज भी दिखाई दे जाते हैं, यह हम सब जानते तो हैं पर कितना विश्वास करते हैं ये चिंतन का विषय है। हर जन्म का complex है और अध्यात्म हर जन्म की quest है।
हर जन्म में यह तृष्णा पूर्ण करने का प्रयास रहेगा, ज्ञानी जनों का आध्यात्मिक रूप से और नदानों का आनंद प्राप्ति रूप से, पर तकरीबन तकरीबन हमारी अपनी ही संवेदना से, non submissive way of life की वजह से अपूर्ण और अशांत ही रह जाती है हमारी आध्यात्मिक तृष्णा ।।
क्या पता ? Thus I claim...
आपने करी, मैंने करी धर्म की स्थापना।।
"धर्म की स्थापना और सनातन धर्म और सनातनी हिंदू ही क्यों" - इसी को जानने की कोशिश करते हैं।
In continuation:
सनातन धर्म :
रंग, जाति,धर्म - ये विश्वास पर नहीं जीविका, स्थान और देश संबंधित बातें हैं, जैसे Indonesia, Thailand , Cambodia, Africa , Nigeria, Niger etc. जो माने तो अब मुस्लिम या ईसाई, यहूदी, बहुल क्षेत्र जाते हैं पर भाव व कर्म सनातन धर्म के रखते हैं, कुछ के ध्वज, भवन, services titles इत्यादि संस्कृत में हैं जो वेदों से लिए गए हैं।
हरेक धर्म का जातक जो सम भाव सेवा में लीन है "सनातनी" है।।
हम कोई फर्क देखें यह, हम पर, हमारी सोच पर निर्भर है।
जैसे हमारे घर रोज़ कूड़े वाला कूड़ा लेने आता है, क्या वो कोई भेद रखता है,हिंदू के घर में या किसी अलग जाति के घर में ?
श्री केदारनाथ, अमरनाथ, पुष्कर, वृंदावन इत्यादि तीर्थों में मुस्लिम हिंदू की सेवा कर रिज्क कमाते हैं। बिहारी जी की पोशाकें जो हम अपने लड्डू गोपाल जी के लिए भाव से, चाव से लाते हैं, कितनी ही मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाई जाती हैं। और उसी श्रद्धा भाव से। जान कर ताज्जुब होगा, ये कारीगर जब तक पोशाक पूरी नहीं करते तब तक पूर्ण सात्विकता follow करते हैं।
हुआ ना सेवा भाव, सनातनी भाव।।
In all practical aspects - स्थान, व्यवसाय, आजीविका चाहे उसमें अर्थ कामना भी शामिल हो, सबको एक ही रंग में रंग दे देती है, सनातनी बना देती है।
In continuation:
"सनातन धर्म और हिंदू"
Wall of Jerusalem ,
also known as The Western Wall : also known as: HaKotel HaMa'aravi, 'the western wall', often shortened to the Kotel or Kosel), known in the West as the Wailing Wall, and in Islam as the Buraq Wall (Ḥā'iṭ al-Burāq) Arabic, is worshipped by the Jews, Christian's and Muslims too.
It is often assumed that the God of Islam is a "fierce war-like deity", in contrast to the God of Christianity and Judaism, who is one of love and mercy.
And yet, despite the manifest differences in how they practise their religions, Jews, Christians and Muslims ALL WORSHIP & SERVES THE SAME GOD.
This too represents the spirit and soul of Sanatan Dharma.
सनातन धर्म का पहला नियम:
ईश्वर ही सत्य है : ब्रह्म ही सत्य है, सत्य ही ब्रह्म है। वही सर्वोच्च शक्ति है। प्रार्थना, पूजा, ध्यान और आरती आदि सभी उसी के प्रति है।
ईश्वर प्राणिधान : सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म, परमेश्वर या परमात्मा कहा जाता है। ईश्वर निराकार और अजन्मा, अप्रकट है। इस ईश्वर के प्रति आस्था रखना ही ईश्वर प्राणिधान कहलाता है।
Source is one & only one.
हम क्योंकी हिंदू धर्म में विश्वास रखते हैं हमारा ईश्वर भी हिंदू हुआ पर क्या हम सभी एक ईश्वर सिद्धांतवादी हैं ? यह ही मतभेद सब धर्मों में दिखता है परन्तु सब धर्मों में "सनातन" की सीख सनातन से सनातन है, एक ही है।
(As what I have learned from different books & from the preachings of various saints.)
The subject is so interesting that couldn't hold not to write about it. Though the subject is very vast and I am too small to define...still would like to try
Please read/ take the article written below in the spirit of gaining spiritual knowledge, no malice towards any one.
"आपने करी धर्म की स्थापना"।।
"मैंने करी धर्म की स्थापना।।"
अपने अनंत जन्मों में से किसी एक में ही नहीं,अनन्य जन्मों में, बारम्बार, लगातार और आगे भी करते रहेंगे जब जब मानुष जन्म में अवतारित होंगे।
क्योंकि यह system, कालचक्र ही ऐसा रचित है की पूर्व याद नहीं रहता, और हम पूर्व से सीखना तो नहीं पर जुड़े रहना चाहते हैं। महादेव ने माता पार्वती को अमर कथा सुनाई जो दो कबूतरों ने भी सुनी और अमर हो गए जो आज भी दिखाई दे जाते हैं, यह हम सब जानते तो हैं पर कितना विश्वास करते हैं ये चिंतन का विषय है। हर जन्म का complex है और अध्यात्म हर जन्म की quest है।
हर जन्म में यह तृष्णा पूर्ण करने का प्रयास रहेगा, ज्ञानी जनों का आध्यात्मिक रूप से और नदानों का आनंद प्राप्ति रूप से, पर तकरीबन तकरीबन हमारी अपनी ही संवेदना से, non submissive way of life की वजह से अपूर्ण और अशांत ही रह जाती है हमारी आध्यात्मिक तृष्णा ।।
क्या पता ? Thus I claim...
आपने करी, मैंने करी धर्म की स्थापना।।
"धर्म की स्थापना और सनातन धर्म और सनातनी हिंदू ही क्यों" - इसी को जानने की कोशिश करते हैं।
In continuation:
सनातन धर्म :
रंग, जाति,धर्म - ये विश्वास पर नहीं जीविका, स्थान और देश संबंधित बातें हैं, जैसे Indonesia, Thailand , Cambodia, Africa , Nigeria, Niger etc. जो माने तो अब मुस्लिम या ईसाई, यहूदी, बहुल क्षेत्र जाते हैं पर भाव व कर्म सनातन धर्म के रखते हैं, कुछ के ध्वज, भवन, services titles इत्यादि संस्कृत में हैं जो वेदों से लिए गए हैं।
हरेक धर्म का जातक जो सम भाव सेवा में लीन है "सनातनी" है।।
हम कोई फर्क देखें यह, हम पर, हमारी सोच पर निर्भर है।
जैसे हमारे घर रोज़ कूड़े वाला कूड़ा लेने आता है, क्या वो कोई भेद रखता है,हिंदू के घर में या किसी अलग जाति के घर में ?
श्री केदारनाथ, अमरनाथ, पुष्कर, वृंदावन इत्यादि तीर्थों में मुस्लिम हिंदू की सेवा कर रिज्क कमाते हैं। बिहारी जी की पोशाकें जो हम अपने लड्डू गोपाल जी के लिए भाव से, चाव से लाते हैं, कितनी ही मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाई जाती हैं। और उसी श्रद्धा भाव से। जान कर ताज्जुब होगा, ये कारीगर जब तक पोशाक पूरी नहीं करते तब तक पूर्ण सात्विकता follow करते हैं।
हुआ ना सेवा भाव, सनातनी भाव।।
In all practical aspects - स्थान, व्यवसाय, आजीविका चाहे उसमें अर्थ कामना भी शामिल हो, सबको एक ही रंग में रंग दे देती है, सनातनी बना देती है।
In continuation:
"सनातन धर्म और हिंदू"
Wall of Jerusalem ,
also known as The Western Wall : also known as: HaKotel HaMa'aravi, 'the western wall', often shortened to the Kotel or Kosel), known in the West as the Wailing Wall, and in Islam as the Buraq Wall (Ḥā'iṭ al-Burāq) Arabic, is worshipped by the Jews, Christian's and Muslims too.
It is often assumed that the God of Islam is a "fierce war-like deity", in contrast to the God of Christianity and Judaism, who is one of love and mercy.
And yet, despite the manifest differences in how they practise their religions, Jews, Christians and Muslims ALL WORSHIP & SERVES THE SAME GOD.
This too represents the spirit and soul of Sanatan Dharma.
सनातन धर्म का पहला नियम:
ईश्वर ही सत्य है : ब्रह्म ही सत्य है, सत्य ही ब्रह्म है। वही सर्वोच्च शक्ति है। प्रार्थना, पूजा, ध्यान और आरती आदि सभी उसी के प्रति है।
ईश्वर प्राणिधान : सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म, परमेश्वर या परमात्मा कहा जाता है। ईश्वर निराकार और अजन्मा, अप्रकट है। इस ईश्वर के प्रति आस्था रखना ही ईश्वर प्राणिधान कहलाता है।
Source is one & only one.
हम क्योंकी हिंदू धर्म में विश्वास रखते हैं हमारा ईश्वर भी हिंदू हुआ पर क्या हम सभी एक ईश्वर सिद्धांतवादी हैं ? यह ही मतभेद सब धर्मों में दिखता है परन्तु सब धर्मों में "सनातन" की सीख सनातन से सनातन है, एक ही है।
(As what I have learned from different books & from the preachings of various saints.)
सनातनी होना क्या है ?
जब सनातन गोस्वामी ने श्री चैतन्य महाप्रभु से प्रत्येक जीवित प्राणी के स्वरूप के बारे में पूछा, तो भगवान ने उत्तर दिया कि: जीवित प्राणी का स्वरूप, या संवैधानिक स्थिति, भगवान के परम व्यक्तित्व की सेवा करना है।
यदि हम भगवान चैतन्य के इस कथन का विश्लेषण करें, तो हम आसानी से देख सकते हैं कि :
प्रत्येक जीवित प्राणी लगातार दूसरे जीवित प्राणी की सेवा करने में लगा हुआ है। यदि हम इस भावना से खोज करते रहें तो दिखाई देगा कि प्राणियों के समाज में सेवा कार्य का कोई अपवाद नहीं है।
दुकानदार ग्राहक की सेवा करता है, और कारीगर पूंजीपति की सेवा करता है।पूंजीपति परिवार की सेवा करता है, और परिवार शाश्वत जीवित प्राणी की शाश्वत क्षमता के संदर्भ में राज्य की सेवा करता है।
कोई भी प्राणी अन्य प्राणियों की सेवा करने से मुक्त नहीं है, और इसलिए हम सुरक्षित रूप से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि सेवा प्राणी का निरंतर साथी है और सेवा प्रदान करना शाश्वत धर्म या सनातन धर्म है।
(Reference from Bhagwad Veda pathshala)
Also this proves there can never by an Atheist, as servicing this universe is considered "faith in God", even excreting poop😝 is a part of service to universe. Ab isse kahan bhagoge.
सनातन धर्म का सातवां और आठवां नियम
जिसमें ना सिर्फ जीवित वरन परलोक सिधारों की भी सेवा को परम् रूप से देखते हैं। सातवें नियम के अंतर्गत यज्ञ आते हैं जिनमें प्रमुख पितृयज्ञ जो पुरखों की सेवा रूप में हिंदुओं में प्रचलित है। वैसे कब्रिस्तान में पुरखों के लिए Christians और मजारों पर मुस्लिम भी सज़दा करते देखे जाते हैं।
आठवां नियम : सेवा करना
स्पष्ट, no mincing of words.
धर्म में सभी कर्तव्यों में श्रेष्ठ 'सेवा' का बहुत महत्व बताया गया है।
यह किसी एक धर्म विशेष का prerogative या कर्म नहीं है। यह सब जातियों धर्मों में समान है, तो सनातन धर्म सबका हुआ और सब धर्म के लोगों में देखा जाता है, हिंदू विशेष में ही हो ऐसा नहीं।
Similarity in Principles :
हमने पिछली पोस्ट में सनातन धर्म के कुछ नियमों को जाना,
1. ईश्वर ही सत्य है,
2. ईश्वर प्राणिधान,
7.8. सेवा
अब कोशिश करते हैं अपनी समझ के दायरे को कुछ और उन्नत करने की...
Quran e Sharif:
Islam is based on five pillars, the first three are:
1.Profession of Faith (shahada).
आस्था की घोषणा (शाहदा) : साक्षी होना। इस का शाब्दिक अर्थ है गवाही देना। इस्लाम में इसका अर्थ इस अरबी घोषणा से हैः ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूल अल्लाह :
हिन्दी अनुवाद: अल्लाह् के सिवा और कोई परमेश्वर नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल (दूत) हैं। इस घोषणा से हर मुसलमान ईश्वर की एकेश्वरवादिता और मुहम्मद के रसूल होने के अपने विश्वास की गवाही देता है।
2. Prayer (salat) - भक्ति
Submission only to Allah
इस्लाम के अनुसार नमाज़ ईश्वर के प्रति मनुष्य की कृतज्ञता दर्शाती है।
3. Alms (zakat). सेवा
In accordance with Islamic law, Muslims are supposed to donate a fixed portion of their income to community members in need. क्योंकि इस्लाम के अनुसार मनुष्य की पूंजी वास्तव में ईश्वर की देन है और दान देने से जान और माल कि सुरक्षा होती है।
Holy Bible:
New International Version:
John 13:34-35
34: “A new command I give you: Love one another. As I have loved you, so you must love one another.
35: By this everyone will know that you are my disciples, if you love one another.”
संक्षेप में - हम किसी भी धर्म मज़हब से हों, परंतु सेवा व प्रेम भाव की सीख का सनातन कोई भेद नज़र आए, ऐसा तो नहीं ।।
Conclusion
सनातन धर्म व सनातनी कौन है?
सनातन की परिकाष्ठा
"किसने क्या किया से फर्क नहीं पड़ता, हम क्या करते हैं यह important है।"
एक हिंदू मुस्लिम बनने के लिए अपना विश्वास बदल सकता है, या एक मुस्लिम हिंदू बनने के लिए अपना विश्वास बदल सकता है, या एक ईसाई अपना विश्वास बदल सकता है, इत्यादि। लेकिन सभी परिस्थितियों में, धार्मिक आस्था का परिवर्तन दूसरों को सेवा प्रदान करने के शाश्वत व्यवसाय को प्रभावित नहीं करता है।
"सेवा प्रदान करना सनातन-धर्म है।।"
भक्तियोग के एक महान आचार्य, श्री रामानुजाचार्य ने सनातन शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है, "जिसका न तो आरंभ है और न ही अंत"...
जीव की वास्तविक पहचान आत्मा है-
अहा ब्रह्मास्मि:
“मैं ब्रह्म हूं।"
"मैं एक आत्मा हूँ।"
मेरा ना आरंभ है और ना ही अंत
हम सदैव से हैं,
सनातन हैं
जब हम आध्यात्मिक समझ के इस मंच पर आते हैं, तो हमारी आवश्यक विशेषता स्पष्ट हो जाती है।
तभी कहा :
आपने करी है सनातन धर्म की संरचना,
मैंने करी सनातन धर्म की संरचना,
हमने करी सनातन की संरचना ।।
Bhagwat Puran: श्लोक 1.2.6
स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे ।
अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सुप्रसीदति॥ ६॥
"सम्पूर्ण मानवता के लिए परम वृत्ति (धर्म) वही है, जिसके द्वारा सारे मनुष्य दिव्य भगवान् (जिसमें जिसकी आस्था हो) की प्रेमा-भक्ति प्राप्त कर सकें। ऐसी भक्ति अकारण तथा अखण्ड होनी चाहिए जिससे आत्मा पूर्ण रूप से तुष्ट हो सके।"
प्रभु की प्रेमा भक्ति है उसके विभन्न रूप (जन जन, हर स्वरुप) से प्रेम, जो सेवा भाव से प्राप्त ही प्राप्त है, सदैव।
इस साधक के अनुभव से :
सनातन धर्म एक जीवन शैली है।
जिसको अपनाकर हर धर्म सनातनी उस अवस्था को प्राप्त हो जाता है जिसे महाऋषियों ने, महाज्ञानियोँ ने जीवन की सर्वोइच्छित पराकाष्ठा से परिभाषित किया है...
!!"सत चित्त आनंद"!!
आनंद ही आनंद,सिर्फ आनंद,
संपूर्ण आनंद
सनातन आनंद ।।
🌹🙏राधे राधे🙏🌹
!! इति !!
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