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Wednesday, June 22, 2022

चक्रव्यूह, Maze

अष्टावक्र गीता 

पंद्रहवां अध्याय, अठारहवाँ सूत्र -

18th verse of 15th Chapter from Ashtavakra Geeta 

एक एव भवांभोधा- वासीदस्ति भविष्यति।
न ते बन्धोऽस्ति मोक्षो वा कृत्यकृत्यः सुखं चर॥१५- १८॥

एक ही भवसागर (सत्य) था, है और रहेगा। तुममें न मोक्ष है और न बंधन, आप्त-काम होकर सुख से विचरण करो॥१५-१८॥

Truth or the ocean of being alone existed, exists and will exist. You neither have bondage nor liberation. 
Be fulfilled and wander happily.(15-18)

As how I see..(साधक प्रयास)

मुक्त होना, मोक्ष पाना , 
यह फिर एक कामना है, 

#सबसे शक्तिशाली, सबसे बड़ी माया,# 

जिसमें हम अपना लोक ही नहीं परलोक भी बांध लेते हैं।

हम मुक्त ही हैं, साक्षी स्वरुप हैं और संसार के चक्रव्यूह का एक हिस्सा हैं।

बस अपने preallocated duties को unattached हो कर करते चलें। अगर आप भविष्य वक्ता चुने गए हैं, भविष्य बांचे यही thread है आपका,जो आपके द्वारा इस संसार में जा रहा है। आज त्याग दोगे तो कल अपने remaining इसी कर्म को पूर्ण करने फिर जन्म होगा।

ना कुछ ग्रहण करने को है ना त्यागने को, 

जो ग्रहण हुआ यहीं से हुआ है, यहीं देना है, 

#यहीं रह ही जायेगा# ,

फिर त्याग ??

जो अपना है ही नहीं उसका त्याग क्या ?

और कैसे ? 

हो सके तो इस चक्रव्यूह को समझें और कोशिश कर भेद डालें।।

                               🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

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