साधूँ किसे और सधेगा कौन ??
"तू भी कृष्ण" और "मैं भी कृष्ण"
Whom to Master and who will Abide ?
Lord and Me are One !!
तुम सर्वव्यपाक, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान
मैं अल्प,सिमित आकार, असहाय
पर हूँ तो तुमसे से ही और मेरे भीतर भी तुम ही हो,
तुम्हारी सत्ता मुझपर ही तो है और मेरा होना तुम हो !!
Oh Ubiquitous, Omni Present, Almighty,
you are complete and my being has limitations
But Ah .. I am from you only
and as you are the one who lives in me , thus Oh Lord !
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थिथ: ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
(श्रीमद्गीता अध्याय १० श्लोक २०)
I, O Gudakesha (the conqueror of slumber) am the soul,
seated in the heart of all beings.I am the beginning the middle and also the end of all lives
(The Gita - Chapter 10 : verse 20:)
हे नींद को जीतने वाले अर्जुन ! सम्पूर्ण प्राणियों के आदि, मध्य तथा अन्त में मैं ही हूँ और सम्पूर्ण प्राणियों के अन्तःकरण (ह्रदय) में स्थित आत्मा भी मैं ही हूँ !!
तथा,
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन
न तदस्ति विना यत्स्यानमया भूतं चराचरमू ॥
Furthermore, O Arjuna, I am the generating seed of all existences.
There is no being-moving or unmoving-that can exist without Me.
यहाँ तो कान्हा ने अपने को हम सब में स्थित बताया है और उससे पहले ये भी कहा ,
"यथाकाशस्थितो नित्यं वायु: सर्वत्रगो महान ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥"
(श्रीमद्गीता अध्याय 09 श्लोक 06)
"जैसे सब जगह विचरनेवाली महान वायु नित्य ही आकाश में स्थित रहती है
ऐसे ही सम्पूर्ण प्राणी मुझमें ही स्थित हैं ऐसा तुम मान लो "!!
(श्रीमद्गीता अध्याय 09 श्लोक 06)
"जैसे सब जगह विचरनेवाली महान वायु नित्य ही आकाश में स्थित रहती है
ऐसे ही सम्पूर्ण प्राणी मुझमें ही स्थित हैं ऐसा तुम मान लो "!!
Arjuna, you must clearly understand that just as the vast wind moves in all directions in the sky, similarly all beings are placed in Me.
("The Gita – Chapter 9 – Shloka 06")
अब जब बैठा समीप खुद के, पाया अपने ही भीतर तुझको ,
और जब निगाहें उठाकर देखा तो जाना सब ओर सिर्फ तुझको ही तुझको !
पहले श्लोक में कहा, सब प्राणियों में मैं ही हूँ और दूसरे में सब प्राणी मुझमें ही हैं
पहले श्लोक में कहा, सब प्राणियों में मैं ही हूँ और दूसरे में सब प्राणी मुझमें ही हैं
अगर हम हर व्यक्ति की कर्मों और पदार्थों से भगवत स्वरुप सेवा करें
उनको मान दें तो संसार के सारे रिश्ते भगवत स्वरूप हो जायेंगे
और सब तरफ एकमात्र कृष्ण ही कृष्ण के होने का एहसास रह जायेगा ,
इसका अनुभव आप ही आप हो जायेगा !!
और जब तुम भी मैं और मैं भी तुम
तो ईर्ष्या कैसी,जलन किससे और बहस कौन सी ?
सोना जब जेवर बनता है तब उसमें सोने से कमतर गुण वाले पदार्थ मिलाये जाते हैं ,
पर जेवर कहलाये तो सोने के ही जाते हैं , क्योंकि असल तत्व तो सोना ही है, पहले भी सोना था,
जेवर के आकार में भी सोना है,पिघालने पर भी सोना
ऐसे ही ,
पैदा हुआ तो शरीर मिला पर आत्मा तो कृष्ण,
समाज के मिलावटी पदार्थों से बना रिश्तों का पहाड़ ,
पर भीतर तो तब भी कृष्ण,
और शरीर मिटा तो भी आत्मा कृष्ण में ही जा मिली ,
सिर्फ मेरी ही नहीं हम सबकी,क्योंकि तत्व तो परम ही हैं !!
फिर कहूँगा -
जब तुम भी मैं और मैं भी तुम,
तो ईर्ष्या कैसी,जलन किससे और बहस कौन सी ?
जरूरत है,अपने और कृष्ण के सम्बंध को समझने की,परमात तत्व को जानने की॥
संसार एक पड़ाव है जीवन की उस यात्रा का जिसका प्रारब्ध यूँ तो लिखा जा चूका है,
पर उस प्रारब्ध को संवारने के लिए जो कर्म होने चाइये वो आप की चेतना पर निर्भर हैं॥
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