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Monday, September 4, 2023

सनातन धर्म

Sanatan Dharm

Religion or Life style 
Formation and it's importance


Question raised by one of the most inquisitive group member:

कोई बता सकता है कि धर्म की स्थापना किसने की। सनातन यदि धर्म नहीं है तो सनातनी हिंदू ही क्यों है ?

Can one explain who established Sanatan Dharm and if Sanatan is not a religion then why only Hindus are Sanatan ?


Amazing question, wonderful thinking...(though relic)...

The subject is so interesting that couldn't hold not to write about it. Though the subject is very vast and I am too small to define...still would like to try

Please read/ take the article written below in the spirit of gaining spiritual knowledge, no malice towards any one.

"आपने करी धर्म की स्थापना"।।
"मैंने करी धर्म की स्थापना।।"

अपने अनंत जन्मों में से किसी एक में ही नहीं,अनन्य जन्मों में, बारम्बार, लगातार और आगे भी करते रहेंगे जब जब मानुष जन्म में अवतारित होंगे।


क्योंकि यह system, कालचक्र ही ऐसा रचित है की पूर्व याद नहीं रहता, और हम पूर्व से सीखना तो नहीं पर जुड़े रहना चाहते हैं। महादेव ने माता पार्वती को अमर कथा सुनाई जो दो कबूतरों ने भी सुनी और अमर हो गए जो आज भी दिखाई दे जाते हैं, यह हम सब जानते तो हैं पर कितना विश्वास करते हैं ये चिंतन का विषय है। हर जन्म का complex है और अध्यात्म हर जन्म की quest है।

हर जन्म में यह तृष्णा पूर्ण करने का प्रयास रहेगा, ज्ञानी जनों का आध्यात्मिक रूप से और नदानों का आनंद प्राप्ति रूप से, पर तकरीबन तकरीबन हमारी अपनी ही संवेदना से, non submissive way of life की वजह से अपूर्ण और अशांत ही रह जाती है हमारी आध्यात्मिक तृष्णा ।।

क्या पता ? Thus I claim...
आपने करी, मैंने करी धर्म की स्थापना।।

"धर्म की स्थापना और सनातन धर्म और सनातनी हिंदू ही क्यों" - इसी को जानने की कोशिश करते हैं।

In continuation:

सनातन धर्म :

रंग, जाति,धर्म - ये विश्वास पर नहीं जीविका, स्थान और देश संबंधित बातें हैं, जैसे Indonesia, Thailand , Cambodia, Africa , Nigeria, Niger etc. जो माने तो अब मुस्लिम या ईसाई, यहूदी, बहुल क्षेत्र जाते हैं पर भाव व कर्म सनातन धर्म के रखते हैं, कुछ के ध्वज, भवन, services titles इत्यादि संस्कृत में हैं जो वेदों से लिए गए हैं।

हरेक धर्म का जातक जो सम भाव सेवा में लीन है "सनातनी" है।।

हम कोई फर्क देखें यह, हम पर, हमारी सोच पर निर्भर है।

जैसे हमारे घर रोज़ कूड़े वाला कूड़ा लेने आता है, क्या वो कोई भेद रखता है,हिंदू के घर में या किसी अलग जाति के घर में ?

श्री केदारनाथ, अमरनाथ, पुष्कर, वृंदावन इत्यादि तीर्थों में मुस्लिम हिंदू की सेवा कर रिज्क कमाते हैं। बिहारी जी की पोशाकें जो हम अपने लड्डू गोपाल जी के लिए भाव से, चाव से लाते हैं, कितनी ही मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाई जाती हैं। और उसी श्रद्धा भाव से। जान कर ताज्जुब होगा, ये कारीगर जब तक पोशाक पूरी नहीं करते तब तक पूर्ण सात्विकता follow करते हैं।

हुआ ना सेवा भाव, सनातनी भाव।।

In all practical aspects - स्थान, व्यवसाय, आजीविका चाहे उसमें अर्थ कामना भी शामिल हो, सबको एक ही रंग में रंग दे देती है, सनातनी बना देती है।


In continuation:

"सनातन धर्म और हिंदू"

Wall of Jerusalem ,
also known as The Western Wall : also known as: HaKotel HaMa'aravi, 'the western wall', often shortened to the Kotel or Kosel), known in the West as the Wailing Wall, and in Islam as the Buraq Wall (Ḥā'iṭ al-Burāq) Arabic, is worshipped by the Jews, Christian's and Muslims too.

It is often assumed that the God of Islam is a "fierce war-like deity", in contrast to the God of Christianity and Judaism, who is one of love and mercy.

And yet, despite the manifest differences in how they practise their religions, Jews, Christians and Muslims ALL WORSHIP & SERVES THE SAME GOD.

This too represents the spirit and soul of Sanatan Dharma.

सनातन धर्म का पहला नियम:
ईश्वर ही सत्य है : ब्रह्म ही सत्य है, सत्य ही ब्रह्म है। वही सर्वोच्च शक्ति है। प्रार्थना, पूजा, ध्यान और आरती आदि सभी उसी के प्रति है।

ईश्वर प्राणिधान : सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म, परमेश्वर या परमात्मा कहा जाता है। ईश्वर निराकार और अजन्मा, अप्रकट है। इस ईश्वर के प्रति आस्था रखना ही ईश्वर प्राणिधान कहलाता है।

Source is one & only one.

हम क्योंकी हिंदू धर्म में विश्वास रखते हैं हमारा ईश्वर भी हिंदू हुआ पर क्या हम सभी एक ईश्वर सिद्धांतवादी हैं ? यह ही मतभेद सब धर्मों में दिखता है परन्तु सब धर्मों में "सनातन" की सीख सनातन से सनातन है, एक ही है।

(As what I have learned from different books & from the preachings of various saints.)


सनातनी होना क्या है ?

जब सनातन गोस्वामी ने श्री चैतन्य महाप्रभु से प्रत्येक जीवित प्राणी के स्वरूप के बारे में पूछा, तो भगवान ने उत्तर दिया कि:  जीवित प्राणी का स्वरूप, या संवैधानिक स्थिति, भगवान के परम व्यक्तित्व की सेवा करना है।

यदि हम भगवान चैतन्य के इस कथन का विश्लेषण करें, तो हम आसानी से देख सकते हैं कि :

प्रत्येक जीवित प्राणी लगातार दूसरे जीवित प्राणी की सेवा करने में लगा हुआ है। यदि हम इस भावना से खोज करते रहें तो दिखाई देगा कि प्राणियों के समाज में सेवा कार्य का कोई अपवाद नहीं है। 

दुकानदार ग्राहक की सेवा करता है, और कारीगर पूंजीपति की सेवा करता है।पूंजीपति परिवार की सेवा करता है, और परिवार शाश्वत जीवित प्राणी की शाश्वत क्षमता के संदर्भ में राज्य की सेवा करता है। 

कोई भी प्राणी अन्य प्राणियों की सेवा करने से मुक्त नहीं है, और इसलिए हम सुरक्षित रूप से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि सेवा प्राणी का निरंतर साथी है और सेवा प्रदान करना शाश्वत धर्म या सनातन धर्म है।
(Reference from Bhagwad Veda pathshala)

Also this proves there can never by an Atheist, as servicing this universe is considered "faith in God", even excreting poop😝 is a part of service to universe. Ab isse kahan bhagoge.

सनातन धर्म का सातवां और आठवां नियम

जिसमें ना सिर्फ जीवित वरन परलोक सिधारों की भी सेवा को परम् रूप से देखते हैं। सातवें नियम के अंतर्गत यज्ञ आते हैं जिनमें प्रमुख पितृयज्ञ जो पुरखों की सेवा रूप में हिंदुओं में प्रचलित है। वैसे कब्रिस्तान में पुरखों के लिए Christians और मजारों पर मुस्लिम भी सज़दा करते देखे जाते हैं।

आठवां नियम : सेवा करना
स्पष्ट, no mincing of words.
धर्म में सभी कर्तव्यों में श्रेष्ठ 'सेवा' का बहुत महत्व बताया गया है।

यह किसी एक धर्म विशेष का prerogative या कर्म नहीं है। यह सब जातियों धर्मों में समान है, तो सनातन धर्म सबका हुआ और सब धर्म के लोगों में देखा जाता है, हिंदू विशेष में ही हो ऐसा नहीं।

Similarity in Principles :

हमने पिछली पोस्ट में सनातन धर्म के कुछ नियमों को जाना,
1. ईश्वर ही सत्य है,
2. ईश्वर प्राणिधान,
7.8. सेवा


अब कोशिश करते हैं अपनी समझ के दायरे को कुछ और उन्नत करने की...

Quran e Sharif:
Islam is based on five pillars, the first three are:

1.Profession of Faith (shahada).
आस्था की घोषणा (शाहदा) : साक्षी होना। इस का शाब्दिक अर्थ है गवाही देना। इस्लाम में इसका अर्थ इस अरबी घोषणा से हैः ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूल अल्लाह :

हिन्दी अनुवाद: अल्लाह् के सिवा और कोई परमेश्वर नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल (दूत) हैं। इस घोषणा से हर मुसलमान ईश्वर की एकेश्वरवादिता और मुहम्मद के रसूल होने के अपने विश्वास की गवाही देता है। 

2. Prayer (salat) - भक्ति
Submission only to Allah
इस्लाम के अनुसार नमाज़ ईश्वर के प्रति मनुष्य की कृतज्ञता दर्शाती है। 

3. Alms (zakat). सेवा 
In accordance with Islamic law, Muslims are supposed to donate a fixed portion of their income to community members in need. क्योंकि इस्लाम के अनुसार मनुष्य की पूंजी वास्तव में ईश्वर की देन है और दान देने से जान और माल कि सुरक्षा होती है।

Holy Bible:
New International Version:
John 13:34-35

34: “A new command I give you: Love one another. As I have loved you, so you must love one another. 

35: By this everyone will know that you are my disciples, if you love one another.”

संक्षेप में - हम किसी भी धर्म मज़हब से हों, परंतु सेवा व प्रेम भाव की सीख का सनातन कोई भेद नज़र आए, ऐसा तो नहीं ।।

Conclusion

सनातन धर्म व सनातनी कौन है?
सनातन की परिकाष्ठा

"किसने क्या किया से फर्क नहीं पड़ता, हम क्या करते हैं यह important है।"

एक हिंदू मुस्लिम बनने के लिए अपना विश्वास बदल सकता है, या एक मुस्लिम हिंदू बनने के लिए अपना विश्वास बदल सकता है, या एक ईसाई अपना विश्वास बदल सकता है, इत्यादि। लेकिन सभी परिस्थितियों में, धार्मिक आस्था का परिवर्तन दूसरों को सेवा प्रदान करने के शाश्वत व्यवसाय को प्रभावित नहीं करता है।

"सेवा प्रदान करना सनातन-धर्म है।।"

भक्तियोग के एक महान आचार्य, श्री रामानुजाचार्य ने सनातन शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है, "जिसका न तो आरंभ है और न ही अंत"...

जीव की वास्तविक पहचान आत्मा है-
अहा ब्रह्मास्मि:
“मैं ब्रह्म हूं।" 

"मैं एक आत्मा हूँ।" 

मेरा ना आरंभ है और ना ही अंत
हम सदैव से हैं,
सनातन हैं

जब हम आध्यात्मिक समझ के इस मंच पर आते हैं, तो हमारी आवश्यक विशेषता स्पष्ट हो जाती है। 

तभी कहा :
आपने करी है सनातन धर्म की संरचना,
मैंने करी सनातन धर्म की संरचना,
हमने करी सनातन की संरचना ।।


Bhagwat Puran: श्लोक  1.2.6
स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे ।
अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सुप्रसीदति॥ ६॥


"सम्पूर्ण मानवता के लिए परम वृत्ति (धर्म) वही है, जिसके द्वारा सारे मनुष्य दिव्य भगवान् (जिसमें जिसकी आस्था हो) की प्रेमा-भक्ति प्राप्त कर सकें। ऐसी भक्ति अकारण तथा अखण्ड होनी चाहिए जिससे आत्मा पूर्ण रूप से तुष्ट हो सके।"

प्रभु की प्रेमा भक्ति है उसके विभन्न रूप (जन जन, हर स्वरुप) से प्रेम, जो सेवा भाव से प्राप्त ही प्राप्त है, सदैव।

इस साधक के अनुभव से :

सनातन धर्म एक जीवन शैली है।
जिसको अपनाकर हर धर्म सनातनी उस अवस्था को प्राप्त हो जाता है जिसे महाऋषियों ने, महाज्ञानियोँ ने जीवन की सर्वोइच्छित पराकाष्ठा से परिभाषित किया है...

!!"सत चित्त आनंद"!!

आनंद ही आनंद,
सिर्फ आनंद,
संपूर्ण आनंद

सनातन आनंद ।।


🌹🙏राधे राधे🙏🌹


!! इति !!



Wednesday, August 30, 2023

Nirvan Shatkam

"निर्वाण षटकम् " 
Nirvana Shatkam:
Shri Adi Shankaracharya

It is said that when Ādi Śaṅkara was a young boy of eight and was wandering near River Narmada, seeking to find his guru, he came across "The seer" Govinda Bhagavatpada , who asked him, "Who are you?"

The boy answered with 06 shlokas and Swami Govindapada accepted Ādi Śaṅkara as his disciple then & there.

The verses are said to be valued to progress in contemplation practices that lead to Self-Realization.

मैं मन, बुद्धि, अहंकार और स्मृति नहीं हूँ, न मैं कान, जिह्वा, नाक और आँख हूँ। न मैं आकाश, भूमि, तेज और वायु ही हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥१॥

I am not mind, nor intellect, nor ego, nor the reflections of inner self (citta).
I am not the five senses.
I am beyond that.
I am not the seven elements or the five sheaths (Panca-kosa).

I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Sivam), pure consciousness.


न मैं मुख्य प्राण हूँ और न ही मैं पञ्च प्राणों (प्राण, उदान, अपान, व्यान, समान) में  कोई हूँ, न मैं सप्त धातुओं (त्वचा, मांस, मेद, रक्त, पेशी, अस्थि, मज्जा) में कोई हूँ और न पञ्च कोशों (अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, आनंदमय) में से कोई, न मैं वाणी, हाथ, पैर हूँ और न मैं जननेंद्रिय या गुदा हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥२॥

Neither can I be termed as energy (prāṇa), nor five types of breath (vayus - Prāṇa, Apāna, Vyāna, Udāna, Samāna), nor the seven material essences nor the five sheaths (panca-kosa). Neither am I the organ of Speech, nor the organs for Holding ( Hand ), Movement ( Feet ) or Excretion. 

I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Śivam), pure consciousness.

न मुझमें राग और द्वेष हैं, न ही लोभ और मोह, न ही मुझमें मद है न ही ईर्ष्या की  भावना, न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥३॥

I have no hatred or dislike, nor affiliation, or liking, nor greed,nor delusion, nor pride or haughtiness, nor feelings of envy or jealousy. I have no duty (dharma), nor any purpose (artha), nor any desire (kāma), nor even liberation (mokṣa).

I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Śivam), pure consciousness.

न मैं पुण्य हूँ, न पाप, न सुख और न दुःख, न मन्त्र, न तीर्थ, न वेद और न यज्ञ, मैं न भोजन हूँ, न खाया जाने वाला हूँ और न खाने वाला हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥४॥
(साधक प्रयास)


I have neither merit (virtue), nor demerit (vice). I do not commit sins or good deeds,
nor have happiness or sorrow, pain or pleasure. I do not need mantras, holy places, scriptures (Vedas), rituals or sacrifices (yajñas). I am none of the triad of the observer or one who experiences, the process of observing or experiencing, or any object being observed or experienced. 

I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Śivam), pure consciousness.
(Sadhak Prayas)

न मुझे मृत्यु का भय है, न मुझमें जाति का कोई भेद है, न मेरा कोई पिता ही है, न कोई माता ही है, न मेरा जन्म हुआ है, न मेरा कोई भाई है, न कोई मित्र, न कोई गुरु ही है और न ही कोई शिष्य,  मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥५॥

I do not have fear of death, as I do not have death. I have no separation from my true self, no doubt about my existence, nor have I discrimination on the basis of caste or creed. I have no father or mother, nor did I have a birth. I am not the relative, nor the friend, nor the guru, nor the disciple.

I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Śivam), pure consciousness.


मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूँ, मैं सदैव समता में स्थित हूँ, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥६॥
(साधक प्रयास)


I am all pervasive.
I am without any attributes, and without any form. I have neither attachment to the world, nor to liberation (mukti). I have no wishes for anything because I am everything, everywhere, every time, always in equilibrium. 

I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Śivam), pure consciousness.(Sadhak Prayas)

🌹🙏🌹
शिवोहम शिवोहम,
शिवोहम शिवोहम !!

"साधक प्रयास"

🌹🙏🏻राधे राधे 🌹🙏🏻

Thursday, September 15, 2022

समत्व योग, Equanimity (scroll down to read in English)

Refer to the last post where it speaks about Equanimity, Gita ji 2.50.
Further to understand the real meaning of Equanimity... 

समत्व योग , जिसका वर्णन कर्मबन्धन से मुक्ति में आया है उसका सरल अर्थ बताने का प्रयास ...

सब समान है।
एक प्रजाति एक समान।


Simple example...
जब हम ख़रीदने जाते हैं तो आभूषण देखते हैं और जब बेचने तो तत्व (कितना ग्राम सोना है)।

समत्व भाव,
किसी एक प्रजाति में आपके व्यवहार में कोई हीन, कोई अव्वल, का भेद न हो पर आधारित है। सबको समान रूप से बर्ताव करें भिन्न भिन्न रिश्तों का भिन्न भिन्न प्रजातियों का भेद तो रहेगा ही, (and of course in one species also the conduct will differ as per the relationships..)

यही भाव दिखता है प्रकृति में, जल में, वायु में, आकाश में, किसी के लिये अलग नहीं भेद नहीं, जहां जैसी हैं सब के लिए समान। आप किस प्रकार से use करते हैं that differs..

"मेरे तो गिरधर गोपाल,"
दुसरो ना कोय।

अर्थ यह नहीं कि मीरा बाई के लिए सिर्फ श्रीकृष्ण का ही भौतिक व आत्मिक अस्तित्व रहा, rather उनके लिए उनके कान्हा का व्यक्तित्व सर्वदा, सम्पूर्णतः , सर्वज्ञ समत्व रहा, श्री कृष्ण का ही व्यक्तित्व रहा सर्वज्ञ। सरल अर्थ है कि मीरा बाई ने हर किसी में सिर्फ श्री कृष्ण का ही रूप देखा।

यही उनकी जीवनी से शिक्षा मिलती है। जो मिला, जो पाया, जो किया सबमें कृष्ण भाव रहा ,समत्व भाव रहा !!

पिता में पितृ रूपी कृष्ण,
माता में मातृ रूपी कृष्ण,
पति में प्रीतम रूपी कृष्ण,
देवर में भाई रूपी कृष्ण,
और तो और प्रभु राम में भी अपने प्यारे श्री कृष्ण का ही दर्श रख कहती हैं-

"पायो जी मैंने राम रत्न धन पायो"

और यह भी -

लगी मोहि राम खुमारी हो।
रमझम बरसै मेहंड़ा भीजै तन सारी हो॥
चहूँ दिस चमकै दामणी गरजै घन भारी हो।
सत गुरु भेद बताइया खोली भरम किवारी हो॥
सब घट दीसै आतमा सबही सूँ न्यारी हो।
दीपग जोऊँ ग्यान का चढूँ अगम अटारी हो।
मीरा दासी राम की इमरत बलिहारी हो॥

भवार्थः-
मैं राम-नाम के नशे में चूर हूँ।रिमझिम पानी बरसता है और मेरी देह और साड़ी इसमें भीग गई है चारों ओर बिजली चमकती है और ज़ोर से बादल गरजते हैं।सतगुरु ने भ्रम के तमाम दरवाज़ों को खोलकर रहस्य कीबात बता दी।आत्मा हर देह में दिखाई देती है फिरभी सबसे विलग रहती है।मैं ज्ञान का दिव्य प्रकाश देखकर अगम की अटारी पर चढ़ जाती हूँ।मीरा कहती है कि मैं दासी बन राम के अमृत की सदैव बलिहारी हूँ


और यह भी -

राम मिलण के काज, मेरे आरति उर जागी री।तड़पत तड़पत कल न पढत है, बिरह-बाण उर लागी री।

भावार्थ : हे सखी, राममिलन की इच्छा (आशा) मेरे मन में जागी है। मैं पल पल तडप रही हूँ, क्योंकि बिरह का तीर मेरे ह्रदय को चीर गया है।

(यह पद  metaphorical हैं, इनका विश्लेषण फिर कभी।।)


सब समान है।
एक प्रजाति एक समान

ना कोई हीन ना कोई उच्च,ना ही किसी से बैर ना द्वेष
अपने में ही समाई समत्वरूप की शायद सबसे बड़ी उद्धारण।

किसी भी प्रकार का असमत्व भाव, चाहे वह कितना भी सुक्ष्म क्यों न हो, उस प्रभु मिलन की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है।

बुद्ध ने उँगलिमाल व विशाखा का भेद देखा ही नहीं वरन दोनों के प्रति समत्व भाव से उनको उनके कर्म बंधनों से मुक्ति का रास्ता दिखा दिया।

समत्व भाव को ही ध्यान रख भक्त सूरदास जी ने लिखा-

"प्रभु जी मेरे अवगुण चित्त ना धरो"
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो चाहो तो पार करो।।

समबुद्धि , सम भाव, समत्व योग ही कर्म बंधन से उभरने का एकमात्र उपाय है।


🌹🙏राधे राधे🙏🌹


Samatva (Sanskrit: समत्व, also rendered samatvam or samata) is the Hindu concept of equanimity.[1][2] Its root is sama (सम) meaning – equal or even.[3]Sāmya - meaning equal consideration towards all human beings - is a variant of the word.

Refer to the last post where it speaks about Equanimity, 
Further to understand the real meaning of Equanimity...(Gita ji 2.50)...Please read...


Everyone is Equal 
One Genus (Species) One Type

Simple example 
When we buy a piece of jewellery we look for type and shape, whereas at the time of reselling we ask for amount of GOLD in it !!      

Equanimity:
The core sense is that with in one genus one shall not differentiate his behavior based on the status of another person. Yes! the conduct will be according to the different species but one genus one behavior, and of course in one species also the conduct will differ as per the relationship.

It is the same equanimity we find in elements too, Core Nature, Air, Water, Sky same for one and all as per the place they are. No difference for specific ones, if cold - cold for all, if warm - warm for all, how we utilize them that differs.      
     
 
"No one else but only Girdhar Gopal belongs to me"
Devotional song by Mira Bai 


Dose not mean that for Mira it was only Krishan who mattered Physically or Spiritually rather She found Kanha persona and feel in every being, only of him. In simple terms she saw Kanha everywhere, for her Kanha is omnipresent as an element in all beings.

Mira Bai's life is the lesson of equanimity, she lived all the virtues of life in unison with Krishna!! 


She treated all her relations as devoted to Kanha - 
In her Father - she found Krishna as her father! 
In her Mother - Krishna as her mother!
In her Husband - Krishna as her husband! 
In her Brother in law - Krishna as her brother-in-law! 
Not even this - She even found Krishan Love in Lord RAM! 


This is how she wrote and sang:  !! I found jewel of Love in the name of RAM !! 🙏  


And this too -Lagi Mohe Ram Khumari ho -
I am fully intoxicated in the love of RAM NAME, which is drizzling, lightening with thunderstorm all over, and my body with my outfit is drenched in it fully. My Guru has revealed the inner meaning of Love that soul is prevalent in all bodies but is still untouched. Thus, I am feeling atop of Love and 
now forever I am devoted like a slave for Ram's nectar.   🙏🙏     
  

And she wrote this too -
Oh Friend! My heart is full of desire to meet Ram. I am yearning for him as the arrow of separation is hurting me.  🙏  

(These poems are metaphorical, will explain them some other time)  

All are one !  
One Genus shall be treated with Equanimity     

Neither one shall be treated as of higher or lower grade, nor shall be treated with any grudge or malice!

The biggest example of Equality is to treat all with Equanimity !!   

Even the minutest sense of un-equanimity is the biggest hurdle in the path of spirituality, in the path of salvation - to be one with GOD.     

For Buddha -Unglimal and Vishakha were the same, he never differentiated, rather showed the same path of Moksha - Salvation to both.    

Keeping the sense of equanimity in mind - Bhakt Surdas said -

O Lord, look not upon my evil qualities !
Thy name, O Lord, is equal sightedness, Make us both sail together the ocean of life !!

One piece of iron is worshipped in temples, another as a knife in the hands of the butcher, but "paras"' stone touches both alike and turn them into gold without differentiating !! ...
Oh Lord, look not upon my evil qualities !  

Practice of Equal, Evenness, Equanimity is the only way to Moksha - Salvation form the effect of doings- Karma !!

🌹🙏राधे राधे🙏🌹          


Tuesday, July 19, 2022

कर्म बन्धन से मुक्ति !!

समत्व योग !! 
कर्म बन्धन से मुक्ति !!

"प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो"
"समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो।।"

Though the below story has many divert versions but as such I have not come across it in the books I have gone through, written by Swami Vivekanand ji. Having said that, it still is a great great inspirational read.

Vivekanand (he was not titled Swami till then) had stayed in Jaipur for quite sometime before he went to America. When he was in the Pink city, the King of Jaipur organised a dance festival which also included a prostitute as that was the regular and the most styled gesture by any kingdom to greet and welcome their guest. 

On learning about the prostitute presence, Vivekanand refused to attend the programme stating that he shall not indulge in these kind of activities.
According to the book 'The immortal Philosopher Of India Swami Vivekananda by Bhawan Singh Rana', Vivekanand refused to attend the event and locked himself in a room. Although the King sought forgiveness from Vivekanand, he refused to attend the event. 

Coming to know about Vivekanand's decision, made the woman very upset & disheartening, as she had taken to perform for Vivekanand as very prestigious for her. Out of the same notion and hurt she is believed to have dedicated a song from Bhakt Surdas collection to describe the hurt given by the apathy of Vivekanand towards her.

प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो।
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो।
एक लोहा पूजा मे राखत, एक घर बधिक परो
सो दुविधा पारस नहीं देखत, कंचन करत खरो।। 
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो….

The song meant..
O Lord, look not upon my evil qualities!
Thy name, O Lord, is equal-sightedness, Make us both sail together the ocean of life!!

One piece of iron is worshipped in temples, another as a knife in the hands of the butcher, But "paras"' stone touches both alike and turn them into gold without differentiating !! ..
Oh Lord, look not upon my evil qualities !

भावार्थ - हे प्रभु ! आप मेरे अवगुणों को चित्त में नहीं रखिए । आपका नाम समदर्शी है अर्थात् आप  अच्छे  बुरे- दोनों के प्रति समान भाव रखनेवाले कहलाते हैं । इसलिए आप अपने स्वभाव के अनुकूल ही मेरे प्रति भी व्यवहार कीजिए ॥१ ॥ एक लोहा मूर्ति के रूप में पूजा - घर में रखा जाता है और दूसरा लोहा पशुओं का वध किये जानेवाले हथियार के रूप में वधिक के में रहता है । पवित्र और अपवित्र - इन दोनों प्रकार के लोहों के प्रति पारस पत्थर कोई भेद भाव नहीं बरतता , दोनों को अपने संस्पर्श से वह सच्चा सोना ही बना देता है ॥

That a person who is great by his virtues would never be affected by worldly affairs. Through the song she asked him why he resented her despite being a noble knowledgeable person. He shall see all as part of God..As one!!

Vivekanand was greatly moved by the song. He met the woman and sought forgiveness from her.

It is being believed that ..That was the day of enlightenment for Vivekanand to transform into a Swami..

And as how I perceived this story: 

ईश्वर समग्र है, सम्पूर्ण है,और सम है। बिल्कुल ऐसे ही ईश्वरीय प्रभुता भी समग्र है, सम्पूर्ण है, सम है।और चूंकि हम स्वयं इस प्रभुत्व का अंग हैं हम ख़ुद-ब-ख़ुद पूर्ण रूपेण समग्र हैं, सम्पूर्ण हैं। बस हर situation में समत्वरूप रहना है।

गीता जी 2: 50

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् ।।2.50।।

Endowed with equanimity, one sheds in this life both good and evil. Therefore, strive for the practice of this Yoga of equanimity. Skill in action lies in (the practice of this) Yoga.(2.50)

समबुद्धि युक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात् उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व स्वरूप योग में लग जा। यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात् कर्म बन्धन से छूटने का उपाय है ।।2.50।।

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Tuesday, July 5, 2022

दान से ज्ञान की ओर - नचिकेता

(Jotting it down in short)

कठोपनिषद में नचिकेता की कहानी आती है, जो एक पांच साल का बालक था। उसके पिता ने एक यज्ञ किया, जिसमें उन्होंने कहा- मैं अपना सब कुछ जो मुझे पसंद है दान कर दूंगा । लेकिन बाद में वो बीमार गायें दान करने लगे। नचिकेता को यह अच्छा नहीं लगा कि बीमार व बूढी गाय दान की जा रही हैं। नचिकेता ने पिता से कहा, ‘यह आपने ठीक नहीं किया। अगर आप कुछ नहीं देना चाहते थे, तो आपको पहले यह नहीं कहना चाहिए था। आप सबसे ज्यादा मुझे पसंद करते हैं बताइए कि आप मुझे किसको दान देंगे?’

पिता को निचकेता द्वारा बार बार यही सवाल दोहराने पर गुस्सा आ गया और गुस्से में बोले, ‘मैं तुम्हें यम देवता को दूंगा।’

बालक, अपने पिता की बात सुनकर उन्हीं के यज्ञ की प्रतिज्ञा व उनके कल्याण हेतु अपना पुत्रधर्म जान यम के पास चला गया। 

यम, उस समय यमलोक में नहीं थे। नचिकेता तीन दिन तक भोजन-पानी के बिना यम के द्वार पर इंतजार करता रहा। तीन दिन बाद यम लौटे तो उन्होंने भूखे, लेकिन पक्के इरादे वाले छोटे से बालक को देखा। यम बोले, ‘मुझे यह अच्छा लगा कि तुम तीन दिन से मेरा इंतजार कर रहे हो।तुम्हारी प्रतिज्ञा व तपस्या से प्रसन्न हो मैं, तुम्हें तीन वरदान का वचन देता हूं। 

नचिकेता ने कहा, ‘पहला वरदान तो आप यह दें कि मेरे पिता का क्रोध शांत हो जाएं और वे मुझे पहले जैसा प्यार करें।’

दूसरा वरदान मांगा, ‘मुझे ज्ञान प्राप्त करने के लिए किस तरह के कर्मों और यज्ञों को करने की जरूरत है।’ यम ने वो भी सीखा दिया। 

फिर नचिकेता ने पूछा, मृत्यु के बाद क्या होता है?’ आत्मा का क्या रहस्य है?

यम ने कहा, ‘यह प्रश्न तुम वापस ले लो। तुम मुझसे और कुछ भी मांग लो। तुम मुझसे राज्य, धन-दौलत, सारे सुख, दुनिया की सारी खुशियां मांग लो, लेकिन यह प्रश्न मत पूछो।’

नचिकेता ने कहा, 'दूसरे प्रश्न में आपने समझा दिया कि इन सब का कोई औचित्य ही नहीं तो इन सब का मैं क्या करूंगा? मुझे धन-दौलत देने से क्या लाभ? आप बस मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए।’

यम ने बार बार सवाल को टालने की कोशिश की। वह बोले, ‘देवता भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं जानते।

नचिकेता बोले:- ‘अगर देवता भी इसका उत्तर नहीं जानते और सिर्फ आप ही जानते हैं, तब आपको इसका उत्तर देना ही होगा।’ नचिकेता ने अपनी जिज्ञासा नहीं छोड़ी। 

नचिकेता को दुनिया का पहला जिज्ञासु माना जाता है – पहला महत्वपूर्ण जिज्ञासु। 

कठ-उपनिषद् महान नचिकेता और उनकी जिज्ञासा को ही समर्पित है, जिसने समस्त संसार को मृत्यु के बाद कि अवस्था व आत्मा के रहस्य से अवगत करा दिया।।

ऐसे उच्च जिज्ञासु को यम ने उसकी प्रबल जिज्ञासा शक्ति को नमन कर अंततः विस्तार से आत्मा का ज्ञान दिया। 

जिज्ञासु होना जरूरी है, साथ साथ एक अच्छा श्रोता होना उससे भी ज्यादा ज्ञान वर्धक है।

जैसे Sh.Umang Vidyarthi जी कहते हैं.. 

सुनने के तीन प्रकार:

सुनना,

बुनना,

गुनना।😊

आपको नमन🙏🏻


🌹🙏🏻राधे राधे🙏🌹

Thursday, June 30, 2022

Being inactive , कुछ भी ना करना !!

As I am learning :

To do nothing,
"Neither towards self,
Nor towards God",
To Become Inactive, 
In the complete spirit and light of it..
Is the most enduring
And a fully devotional act in itself.

The real essence of 
Moksha , Liberation 
Is hidden in these words...🙏

The one who can comprehend it, 
In its true meaning,
Will be liberated naturally..


कुछ भी न करना, 
"ना अपने प्रति ना ईश्वर के ही" !!
समस्त तौर पर अकर्मा हो जाना, 
सबसे बड़ा, सबसे कठिन 
व सम्पूर्ण (नवधा) भक्ति पूर्ण पुरषार्थ है।

इस भाषा के अर्थ में ही मोक्ष छिपा है, 
जिसने पा लिया 
मुक्त हो गया।।

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🌹

Tuesday, June 28, 2022

दिव्य दम्पति! Divine Couple

इस दिव्य दम्पति श्री राधाकृष्ण 
को लगातार निहारने के अतिरिक्त 
मन को कहीं भी सुख प्राप्त नहीं होता है,
जिनकी एक मधुर चितवन ही 
मन को वश में कर लेती है। 
हरिदासी ललिता जी सखी कहती हैं :
*श्री हरिदास के स्वामी
 श्यामा कुंजबिहारी बिहारीन
 का यश ही इतना पवित्र है।*

There is no other trace of happiness 
for the mind than 
constantly admiring 
the divine couple 
*Shri Radha Krishn.*
They can captivate the heart
 simply by glancing! 
Shri Haridasi Lalita ji sakhi says:
*“That's the pure glory of
 Kunjbihari Biharin 
Shri RadhaKrishn, 
The beloved Lord of Shri Haridas”.*

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Monday, June 27, 2022

रंतिदेव

Detachment:

निर्लिप्ता पर एक और कहानी:

कहानी है एक राजा और उसके परिवार की। आपने भागवत सुनी हो तो आचार्यगण इस कथा को बहुत रस के साथ सुनाते हैं।

राजा भरत के कुल में आगे चलकर राजा रंतिदेव हुए। महाराज रंतिदेव बिना परिश्रम किए दैववश प्राप्त संपत्ति का उपभोग किया करते थे। इस तरह उनकी संपत्ति समाप्त होती गई। उन्हें संग्रह पर यकीन न था इसलिए संग्रह नहीं करते थे। आहार स्वरूप जो मिल जाता वह ग्रहण कर लेते नहीं मिलता तो उपवास कर लेते।

एक बार 48 दिनों तक उन्हें अन्न और जल नसीब न हुआ। उन्चासवें दिन उन्हें कुछ घीया की खीर व हलवा तथा जल प्राप्त हुआ। 48 दिनों से भूखे-प्यासे राजा के परिवार को राहत मिली।

रंतिदेव का परिवार उस अन्न को ग्रहण करने की तैयारी कर ही रहे थे कि उसी समय एक ब्राह्मण चले आए। रंतिदेव ने उस भोजन में से ब्राह्मण को भी खिलाया। बचे हुए अन्न को परिवार ने आपस में बांट लिया।

वे लोग खाने बैठे ही थे कि तभी एक शूद्र आया और उसने प्राणरक्षा के लिए अन्न मांगा। रंतिदेव ने उसे भी भोजन कराया। उसके बाद बचे हुए भोजन को सभी ग्रहण करने की तैयारी करने लगे।

तभी एक अतिथि आया जिसके साथ एक कुत्ता भी था। उसने भी रंतिदेव से स्वयं के लिए और कुत्ते के लिए आहार मांगा। रंतिदेव ने बचा हुआ सारा भोजन उन्हें दे दिया।

अब सिर्फ एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त जल बचा था।

रंतिदेव का परिवार उस जल को बांटकर पीने ही जा रहा था कि एक चांडाल आ पहुंचा। उसने कहा मैं अत्यंत पीड़ित हूं। हीन कुल में पैदा हुआ इसलिए किसी ने सहायता नहीं की। यदि खाने को नहीं दे सकते तो मुझे थोड़ा जल ही दे दीजिए। 

रंतिदेव ने वह जल उसे दे दिया। 

चांडाल के जल पीते ही वहां पर ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रकट हो गए। 

रंतिदेव ने उन्हें प्रणाम किया। देवों ने उनसे अभीष्ट मांगने को कहा।

रंतिदेव ने कहा- 

प्रभु संसार की किसी भी आसक्ति और स्पृहा में लिप्त नहीं होना चाहता। मैं बस भक्ति में लीन रहूँ।

रंतिदेव के इस मनोभाव से देवतागण बड़े प्रसन्न हुए। 

श्रीहरि ने उन्हें अपने अंदर लीन कर लिया और राजा के परिजनों को अपने लोक में महादानियों में श्रेष्ठ पद पर आसीन किया।

कहते हैं न बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख।

जब तक हम त्याग की भावना नहीं लाएंगे ईश्वर कहां से हमें सुलभ होंगे?

भगवान से हम सिर्फ मांगते रहते हैं, उन्हें एक तरह से लिस्ट थमा देते हैं।

आप यदि घर के मुखिया हों और घर के लोग सिर्फ आपसे डिमांड रखते रहें तो कैसा लगेगा ?

सोचिए किसी दिन आप कहें कि बताओ क्या चाहिए और लोग कहें कुछ नहीं बस आपको सुकून में देखना चाहते हैं। आपकी आत्मा तृप्त हो जाएगी। आपके पास जो होगा वह सर्वस्व लुटाने को तैयार हो जाएंगे।

शायद यही बात समझाने के लिए भागवत में रंतिदेव की कथा शामिल की गई होगी।

पुराण आदि धर्मग्रंथ संकेत में कूट भाषा में कुछ बड़े संदेश लेकर आते हैं। हमें उनका अर्थ समझना चाहिए। सिर्फ कथा नहीं है, ये ज्ञान की गंगा है, नहाते जाइए।

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Story taken from other sources...

Sunday, June 26, 2022

कर्मयोगी - तपस्वी

Came across this message which reminded me of verses from Gita about human conduct...And also realising once again as how Gita ji is so close and factual about situations in everyone's life...

Sharing with you here..   

मान लीजिए आप चाय का कप हाथ में लिए खड़े हैं और आपको धक्का लग जाता है, तो क्या होता है? आपके कप से चाय छलक जाती है। अगर आप से पूछा जाए कि आप के कप से चाय क्यों छलकी? तो आप का उत्तर होगा क्योंकि मुझे धक्का लगा।

गलत -

सही उत्तर ये है कि आपके कप में चाय थी इसलिए छलकी। आप के कप से वही छलकेगा जो उसमें है। 

इसी तरह जब ज़िंदगी में हमें धक्के लगते हैं लोगों के व्यवहार से, तो उस समय हमारी वास्तविकता ही छलकती है। आप का सच उस समय तक सामने नहीं आता, जब तक आपको धक्का न लगे, तो देखना ये है कि जब आपको धक्का लगा तो क्या छलका ?

धैर्य, मौन, कृतज्ञता, स्वाभिमान, निश्चिंतता, मानवता, गरिमा,

या

क्रोध, कड़वाहट, पागलपन, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा इत्यादि।

श्री गीता जी: 17/14-16

देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।

देवता, ब्राह्मण, गुरुजन और जीवन्मुक्त महापुरुष का पूजन करना, शुद्धि रखना, सरलता, ब्रह्मचर्य का पालन करना और हिंसा न करना - यह शरीर सम्बन्धी तप कहा जाता है। - 17.14

Austerity of the body consists in worship of the Supreme Lord, the brahmanas, the spiritual master, and superiors like the father and mother, and in cleanliness, simplicity, celibacy and nonviolence. (BG..17.14)


अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।।17.15।।

उद्वेग न करने वाला, सत्य, प्रिय, हितकारक भाषण तथा स्वाध्याय और अभ्यास करना -- यह वाणी-सम्बन्धी तप कहा जाता है। -17.15

Austerity of speech consists in speaking words that are truthful, pleasing, beneficial, and not agitating to others, and also in regularly reciting Vedic literature..(BG..17.15)


मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।।17.16।।

मन की प्रसन्नता, सौम्य भाव, मननशीलता, मनका निग्रह और भावों की शुद्धि - इस तरह यह मन-सम्बन्धी तप कहा जाता है। - 17.16.   

And satisfaction, simplicity, gravity, self-control and purification of one’s existence are the austerities of the mind. (BG..17.16)

 
हम कैसे कर्मयोगी रह कर भी तपस्वी बन सकते हैं, स्वयं निर्धारित करें।    
    
🙏🌹राधे राधे🌹🙏                  

Saturday, June 25, 2022

नाम जाप महिमा

भगवन्नाम ऐसा है कि इससे क्षणमात्र में त्रिविध ताप नष्ट हो जाते हैं। हरि-कीर्तन में प्रेम-ही-प्रेम भरा है। इससे दुष्ट बुद्धि सब नष्ट हो जाती हैं और हरि-कीर्तन में समाधि लग जाती है।"

श्री तुलसीदासजी कहते हैं-

नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।
नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है।

नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं। करहु बिचारू सुजन मन माहीं।।
नाम लेते ही संसार समुद्र सूख जाता है। सज्जनगण! मन में विचार कीजिए कि दोनों में कौन बड़ा है (नाम या समुद्र)

बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू।।
वेद, पुराण और संतों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल राम नाम में प्रेम होना है।

'बृहन्नारदीय पुराण' में कहा हैः 
संकीर्तनध्वनिं श्रुत्वा ये च नृत्यन्तिमानवाः। तेषां पादरजस्पर्शान्सद्यः पूता वसुन्धरा।।
'जो भगवन्नाम की ध्वनि को सुनकर प्रेम में तनमय होकर नृत्य करते हैं, उनकी चरणरज से पृथ्वी शीघ्र ही पवित्र हो जाती है।'

'श्रीमद् भागवत' के अन्तिम श्लोक में भगवान वेदव्यास जी कहते हैं-

नामसंकीर्तन यस्य सर्वपापप्रणाशनम्।
प्रणामो दुःखशमनस्तं नमामि हरिं परम्।।

'जिन भगवान के नामों का संकीर्तन सारे पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है और जिन भगवान के चरणों में आत्मसमर्पण, उनके चरणों प्रणाम सर्वदा के लिए सब प्रकार के दुःखों को शांत कर देता है, उन्हीं परमतत्त्वस्वरूप श्रीहरि को मैं नमस्कार करता हूँ।'

एक बार नारदजी ने भगवान ब्रह्माजी से कहाः 
"ऐसा कोई उपाय बतलाइये जिससे मैं विकराल कलिकाल के जाल में न आऊँ।" 

इसके उत्तर में ब्रह्माजी ने कहाः
आदिपुरुषस्य नारायणस्य नामोच्चारणमात्रेण निर्धूत कलिर्भवति।

'आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चार करने मात्र से ही मनुष्य कलि से तर जाता है।'   
(कलिसंतरणोपनिषद्)

'पद्म पुराण में आया हैः
ये वदन्ति नरा नित्यं हरिरित्यक्षरद्वयम्।
तस्योच्चारणमात्रेण विमुक्तास्ते न संशयः।

'जो मनुष्य परमात्मा के दो अक्षरवाले नाम 'हरि' का उच्चारण करते हैं, वे उसके उच्चारणमात्र से मुक्त हो जाते हैं, इसमें शंका नहीं है।

*श्रीमद्भागवत षष्ठम स्कन्ध से -* 
बहुत सुन्दर प्रश्न है ,यदि हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ती का कोई उपाय है?

महाराज राजा परीक्षित जी ने ,श्री शुकदेव जी से ऐसा प्रश्न किया कि.. 
🌺 अनजाने में किये हुये पाप का प्रायश्चित कैसे होता है??? 🌺
बोले - भगवन आपने पञ्चम स्कन्ध में जो नरको का वर्णन किया ,उसको सुनकर तो गुरुवर रोंगटे खड़े जाते हैं। प्रभूवर!! मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ की यदि कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं , जैसे चींटी मर गयी, हम लोग स्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं ,उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं और भी ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं। तो उन पापों से मुक्ती का क्या उपाय है भगवन ?

आचार्य शुकदेव जी ने कहा -राजन ऐसे पाप से मुक्ती के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए ।

महाराज परीक्षित जी ने कहा - भगवन एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है तो सोचना पड़ता है ।आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं। 

आचर्य जी बोले:- 
 राजन! पहले मैं पाँचों यज्ञ विस्तार से बताता हूँ,सुनिये - 

पहला यज्ञ है -जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के लिए निकाल देना चाहिए ।

दूसरा यज्ञ है राजन -चींटी को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ों के पास डालना चाहिए।

तीसरा यज्ञ है राजन्-पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए ।

चौथा यज्ञ है राजन् -आटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियो को डालना चाहिए ।

पांचवां यज्ञ है राजन् भोजन बनाकर अग्नि भोजन , रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमे घी शक्कर मिलाकर अग्नि को भोग लगाओ। राजन् अतिथि सत्कार खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे। राजन् ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ती मिल जाती है । हमे उसका दोष नहीं लगता । उन पापो का फल हमे नहीं भोगना पड़ता।

राजा ने पुनः पूछ लिया -
भगवन यदि गृहस्थ में रहकर ऐसे यज्ञ न हो पावे तो और कोई उपाय हो सकता है क्या ??

तब यहां पर आचार्य शुकदेव जी हम सभी मानव के कल्याणार्थ कितनी सुन्दर बात बता रहे हैं। 

श्री शुकदेव जी कहते हैं....राजन्!!

कर्मणा कर्मनिर्हांरो न ह्यत्यन्तिक इष्यते।अविद्वदधिकारित्वात् प्रायश्चितं विमर्शनम् ।।

नरक से मुक्ती पाने के लिए कई तरह के प्रायश्चित हैं। कोई व्यक्ति तपस्या के द्वारा प्रायश्चित करता है। कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित करता है। कोई व्यक्ति यम,नियम,आसन के द्वारा प्रायश्चित करता है।

लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ राजन!

केचित् केवलया भक्त्या वासुदेव परायणः।।

केवल हरी नाम संकीर्तन में ही जाने अनजाने में किये हुए पापों को नष्ट करने का सामर्थ्य है । 

इस लिए हे राजन् ! सुनिए :-

🌺स्वास स्वास पर कृष्ण भजि बृथा स्वास जनि खोय।🌺
🌺न जाने या स्वास की आवन होय न होय।। 🌺

अर्थात-
किसी को यह भी पता नही की जो स्वास अंदर जा रही है वो लौट कर वापस आएगी की नही। इस लिए सदैव, हर सांस पर मन ही मन हरी का नाम जपते रहो।


🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Friday, June 24, 2022

कचरा !!

"कचरा चढ़ाने वाली महिला से भी भगवान हुए प्रसन्न"

किसी समय में एक बुढ़िया ऐसी थी, जो कुछ उसके पास होता, सब कुछ परमात्मा पर चढ़ा देती थी।

यहां तक कि रोज सुबह अपने घर का जो कचरा निकलता था, वह भी मंदिर जाकर भगवान की ओर फेंक देती और कहती थी कि "तेरा तुझको ही समर्पित"।

गांव के लोगों ने जब ये सुना तो उन्होंने कहा कि ये तो हद हो गई। फूल चढ़ाओ, मिठाई चढ़ाओ, लेकिन भगवान को कचरा कौन चढ़ाता है?

जब एक फकीर उस गांव से गुजरा तो उसने भी एक दिन यही देखा कि बुढ़िया मंदिर की ओर गई और भगवान की ओर कचरा फेंककर कहा- हे भगवान, तुझको ही समर्पित।

उस फकीर ने कहा कि बाई, ठहरो, मैंने बड़े-बड़े संत देखे हैं, तूम ये क्या कह रही हो?

बुढ़िया ने भगवान की ओर इशारा करके कहा, मुझसे मत पूछो, उससे ही पूछो। जब मैंने सब कुछ उसे दे दिया तो कचरा क्यों बचाऊं? मैं ऐसी नासमझ नहीं हूं।

उस रात फकीर ने एक सपना देखा कि वह स्वर्ग में है और परमात्मा के सामने खड़ा है। स्वर्ण के सिंहासन पर परमात्मा विराजमान हैं। सुबह हो रही है, पक्षी गीत गाने लगे और तभी अचानक एक टोकरी भर कचरा सीधा भगवान को आकर लगा।

फकीर ने परमात्मा से कहा कि यह बाई एक दिन भी नहीं चूकती। फकीर ने कहा कि मैं जानता हूं इस बाई को। कल ही तो मैंने इसे देखा था और कल ही मैंने उससे कहा था कि यह तू क्या करती है?

फकीर करीब सप्ताह भर स्वर्ग में रहा। और रोज कचरा भगवान को सीधा लगता रहा।

जब फकीर से रहा नहीं गया तब उसने भगवान से पूछा कि प्रभु आपको फूल चढ़ाने वाले लोग भी हैं, रोज सुबह से पेड़ों के फल तोड़ते हैं, घर के आसपास से फूल तोड़कर आपको चढ़ाते हैं, लेकिन उनके सभी फल फूल तो यहां दिखाई नहीं दे रहे हैं ? पर यह कचरा नियमित रूप से आप पर चढ़ता रहता है, ऐसा क्यों ?

भगवान ने उस फकीर से कहा:-  जो आधा-आधा चढ़ाता है, उसका मुझ तक पहुंचता ही नहीं है। इस महिला ने अपना सब कुछ मुझे चढ़ा दिया है। ये कुछ भी अपने पास कुछ भी बचाती नहीं है, जो कुछ है सब चढ़ा दिया है। जो सब कुछ मेरा ही है यह जान कर,मान कर मुझे ही समर्पित कर देता है, वह मुझ तक कैसे ना पहुंचे।।

🌹🙏🏻🌹

श्री गीता जी , अध्याय 15 श्लोक 19:

यो मामेवमसंमूढ़ो जानाति पुरुषोत्तमम् । स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।।15.19।।

अनुवाद : हे भारत इस प्रकार जो संमोहनरहित पुरुष मुझ पुरुषोत्तम को जानता है, वह सर्वज्ञ होकर सम्पूर्ण भाव से अर्थात् पूर्ण हृदय से मेरी भक्ति करता है।।(१५.१९)

Arjuna, the wise man who thus realizes Me as the Supreme Person,—knowing all, he constantly worship Me (the all-pervading Lord) *with his whole being.* (15.19)

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Thursday, June 23, 2022

शून्य , Nothingness

 प्रेम गली अति सांकरी वा में दो ना समाय।। 
(संत कबीर)

अर्थात:
जब भक्त और भगवान एक हो जाते हैं। 
वो दो नहीं रहते। 
ये ही अद्वैत है जहां दो नहीं। 
वस्तुतः दो का ना होना, एक होना भी नहीं। 

"वरन सिर्फ शून्य रह जाना है।"
Zero...State of Nothingness

इसी को बुद्ध (बौद्ध) ने निर्वाण (दिए का बुझ जाना) कहा।

इसे भगवान महावीर ने केवल्य कहा, जिसमें कोई गिनती का शुरू और अंत नहीं। ना कुछ कहना ही है। जिस को बताने का जो तरीका है, अद्वैत कहा गया।

Where as :

जब तक भक्ति करने वाला है तब तक तो भगवान भी हैं मतलब दो जन हैं, यह हुआ द्वैत। जब तक यह भेद है , भोग पूजन , पाप पुण्य , कर्म  निष्कर्म इत्यादि की भाषा जारी रहेगी !! 

श्रीमद्भागवत : 9/4/63

श्रीभगवानुवाच अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज । साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रियः ॥ 

अनुवाद: 

भगवान् ने उस ब्राह्मण से कहा : मैं पूर्णतः अपने भक्तों के वश में हूँ । निस्सन्देह , मैं तनिक भी स्वतंत्र नहीं हूँ । चूँकि मेरे भक्त भौतिक इच्छाओं से पूर्णतः रहित होते हैं अतएव मैं उनके हृदयों में ही निवास करता हूँ । मुझे मेरे भक्त ही नहीं , मेरे भक्तों के भक्त भी अत्यन्त प्रिय हैं ।

🙏🏻

यूँ तो श्री गीता का समूचा ज्ञान ही अद्वैत का है still referring to a few quotes from it..

भगवद् गीता: अध्याय 15,श्लोक 14:
जो पुरुषोत्तम योग में भी कहा गया है:

अहं वैश्र्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः |
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् || १४ ||

मैं ही सब प्रणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर अग्नि रूप होकर चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ ।।14।। 

I am the fire of digestion in every living body, and I am the air of life, outgoing and incoming, by which I digest the four kinds of foodstuff. (14)

(इस श्लोक की "भी" व्याख्या श्रद्धेय श्री रामसुखदास जी ने अभूतपूर्व की है, पड़ेंगे तो और भी clarity आएगी।)

एक का बोध हो जाये तो "स्वंय" या "मैं" तो मिट ही गया और तब जो भी क्रिया आपके द्वारा होगी वो आप ही आप ईश्वरीय हो जाएगी, वो ही प्रसाद बन जायेगी, अलौकिक हो जाएगी।

श्री गीता जी :15.19
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत॥ १९॥

हे भरतवंशी अर्जुन! इस प्रकार जो मोहरहित मनुष्य मुझे पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ सब प्रकार से मेरा ही भजन करता है।।

इस साधक का प्रयास कहता है,           

                                                                  
रे सखी सुन! 
यह तन निज वन श्री कुँज, 
मन है गोलोक, 
नयन श्यामा-श्याम की मधुर झांकी
व हृदय, प्रिया प्रियतम की सेज़! 
अपने में ही जो समाए हैं,
सदैव अपने राधेश्याम,
उन्हें निरवैर हो, निर्मल हो नमन कर 
व एकाकार हो जा!!


Listen my friend! 
This body is their arbour, mind is abode, eyes their glares & Shyama-Shyam's throne to settle, is our heart. The one who are eternally present with in us, our  Shri Radheshyam, remove all your malice, with Purity, bow to them & become one with Lord..


🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Wednesday, June 22, 2022

चक्रव्यूह, Maze

अष्टावक्र गीता 

पंद्रहवां अध्याय, अठारहवाँ सूत्र -

18th verse of 15th Chapter from Ashtavakra Geeta 

एक एव भवांभोधा- वासीदस्ति भविष्यति।
न ते बन्धोऽस्ति मोक्षो वा कृत्यकृत्यः सुखं चर॥१५- १८॥

एक ही भवसागर (सत्य) था, है और रहेगा। तुममें न मोक्ष है और न बंधन, आप्त-काम होकर सुख से विचरण करो॥१५-१८॥

Truth or the ocean of being alone existed, exists and will exist. You neither have bondage nor liberation. 
Be fulfilled and wander happily.(15-18)

As how I see..(साधक प्रयास)

मुक्त होना, मोक्ष पाना , 
यह फिर एक कामना है, 

#सबसे शक्तिशाली, सबसे बड़ी माया,# 

जिसमें हम अपना लोक ही नहीं परलोक भी बांध लेते हैं।

हम मुक्त ही हैं, साक्षी स्वरुप हैं और संसार के चक्रव्यूह का एक हिस्सा हैं।

बस अपने preallocated duties को unattached हो कर करते चलें। अगर आप भविष्य वक्ता चुने गए हैं, भविष्य बांचे यही thread है आपका,जो आपके द्वारा इस संसार में जा रहा है। आज त्याग दोगे तो कल अपने remaining इसी कर्म को पूर्ण करने फिर जन्म होगा।

ना कुछ ग्रहण करने को है ना त्यागने को, 

जो ग्रहण हुआ यहीं से हुआ है, यहीं देना है, 

#यहीं रह ही जायेगा# ,

फिर त्याग ??

जो अपना है ही नहीं उसका त्याग क्या ?

और कैसे ? 

हो सके तो इस चक्रव्यूह को समझें और कोशिश कर भेद डालें।।

                               🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Tuesday, June 21, 2022

निर्लिप्ता - Detachment

 रे मन! 

प्रारब्ध पहले रचा , 

फिर जना इंसान,

चल सके जो रची राह पर, बिन अपना कुछ जान, 

वही है पौरुष,वही पुरषार्थ,

फ़क़त बात है इतनी सी ,

मान सके तो मान।(साधक प्रयास)

पुरषार्थ, सकारात्मक कर्म है , और सकारात्मक कर्म वही है कि जो भी आपको assign किया जाय वह बगैर अपना कोई स्वार्थ मीन मेख , लालच, पसंद ना पसंद के पूर्ण किया जाए।

हमारा सबसे महत्वपूर्ण कर्म , इस universe के सृजन का है, ईश्वर को मानें या ना मानें, आप तो हैं, और आपसे यह संसार, जो हर पल आपसे दूसरे को transfer हो रहा है,

बस आप जो कर रहे हैं उसे सकारात्मक ऊर्जा से, सकारात्मक सोच से करें, पौरुष पूर्ण पुरषार्थ हो जाएगा। (irrespective / unfazed of its outcome..)

जैसे बीज और फल।

For example: 

A..हम कहाँ, किस घर, किन माता पिता को, किस धर्म में, किस लिंग में अवतारित हुए हैं , यह हमने तो decide नहीं किया, pre assigned है, now we shall follow the social system n thus live our life under the impression of fulfilling the responsibilities accordingly..

B.. being born is also the result of process , बीज से फल, फल से बीज.. thus we shall remain focused on what we prefer... besides the social stigmas...

Or shall we simply sail with detachment towards one & all but still fulfilling what is expected...

We can be a sadhu, detached but  completing our journey as responsibly as any homely person... Example - Uddhav / or in current times so far Sadguru Jaggi ..

Or we can be an entrepreneur , still detached, but living in social form of society as expected...Like - "Sant Kabir"..

या सामान्य गृहस्थ जैसे , *गोपियाँ, गोप, मीरा* फिर भी निर्लिप्त।

बुद्ध होने में पुरषार्थ है तो मीरा जैसे गृहस्थ हो कर भी निर्लिप्त रहना पौरुष पूर्ण है।

जरुरत है तो अपने को इस सम्पूर्ण संरचना का एक अहम हिस्सा जानना और जो घट रहा है उसे सिर्फ द्रष्टा भाव से नहीं बल्कि साक्षी बन कर अपनी सकारात्मक ऊर्जा से संजोने की..

निर्लिप्ता - Detachment:

पर एक बहुत रोचक व ज्ञानपूर्ण प्रसंग है श्री कृष्ण लीला में आता है ..

अगस्त्य ऋषि जमुना किनारे आकर कुछ समय रुके तो गोपियाँ उन्हें भोग लगाने नियमित रूप से जाने का विचार बनाने लगीं।

तब गोपियों ने श्री कृष्ण से अपनी इच्छा प्रकट करी और अपनी समस्या का निवारण भी जानना चाहा कि :- 

हे कृष्ण! हमें अगस्त्य ऋषि को भोग लगाने जाना है और ये यमुना जी बीच में पड़ती हैं अब बताओ कैसे जावें ?

भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि जब तुम यमुना जी के पास जाओ तो कहना कि :-– हे यमुना जी ! अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी हैं तो हमें रास्ता दें ।

गोपियाँ हँसने लगीं कि लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते हैं , सारा दिन तो हमारे पीछे-पीछे रास रचाता घूमता है, कभी हमारे वस्त्र चुराता है , कभी मटकियाँ फोड़ता है , कभी हमारे घर में घुसकर माखन चुराता है , कोई बात नहीं , फिर भी हम बोल देंगी ।

गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर कहती हैं कि – हे यमुना महारानीजी ! अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी हैं तो हमें रास्ता दे दो और गोपियों के कहते ही यमुना जी ने रास्ता दे दिया । गोपियाँ तो आश्चर्यचकित रह गईं कि यह क्या हुआ कृष्ण ब्रह्मचारी ?

अब गोपियाँ अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापिस आने लगीं तो अगस्त्य ऋषि से कहा कि महात्माजी ! अब हम घर कैसे जायें , यमुना जी बीच में हैं ?

अगस्त्य ऋषि ने कहा कि:-  *तुम यमुना जी को कहना कि अगर अगस्त्य जी निराहार हैं तो हमें रास्ता दे दो ।*

गोपियाँ मन में सोचने लगीं कि अभी-अभी तो हम इतना सारा भोजन लाईं थीं , सो सबका सब खा गये और अब अपने आप को निराहार बता रहे हैं ,इन महात्माजी की भी क्या विचित्र बात है ?

गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर बोलीं कि – हे यमुना जी ! अगर अगस्त्य ऋषि निराहार हैं तो हमें रास्ता दे दो और यमुना जी ने रास्ता दे दिया ।

गोपियाँ आश्चर्य करने लगीं कि जो खाता है वो निराहार कैसे हो सकता है और जो दिन रात हमारे पीछे- पीछे घूमता-फिरता है वो ब्रह्मचारी कैसे हो सकता है ? इसी विचार-चिंतन में गोपियों ने श्री कृष्ण के पास आकर फिर से वही प्रश्न किया कि आप ब्रह्मचारी कैसे हैं ?

भगवान् श्री कृष्ण कहने लगे :- गोपियों ! मुझे तुमारी देह से कोई लेना देना नही है, मैं तो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हूँ , मैंने कभी वासना के तहत संसार नहीं भोगा है । मैं तो निर्मोही हूँ , इसलिए यमुना ने आप को मार्ग दे दिया ।*

तब गोपियाँ बोलीं कि भगवन् ! मुनिराज ने तो हमारे सामने भोजन ग्रहण किया फिर भी वह बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवासी हों तो हे यमुना मैया ! मार्ग दे दें और बड़े आश्चर्य की बात है कि यमुनाजी ने हमको मार्ग दे दिया ।

श्री कृष्ण हँसने लगे और बोले कि :- *अगत्स्य आजन्म उपवासी ही हैं , क्योंकि अगत्स्य मुनि भोजन ग्रहण करने से पहले मुझे भोग लगाते हैं और उनका भोजन में कोई मोह नहीं नहीं होता , उनके मन में कभी भी यह विचार नहीं होता कि मैं भोजन करुँ या भोजन कर रहा हूँ । वह तो अपने अंदर विराजमान मुझे भोजन करा रहे होते हैं इसलिए वो आजन्म उपवासी हें ।*

यह सुनकर और परम सत्य को जानकर गोपियाँ श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक हो गयीं ।

इस कथा में भगवान श्री कृष्ण जो कि भक्तवत्सल हैं, गोपियों के मन चेतन पर पड़े दृष्टि भ्रम को भी दूर किया था।

*:श्री कृष्णाय  नम:*।।


*श्रीकृष्ण उवाच*

चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्पर: । बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित: सततं भव ।।

Mentally resigning all your duties to Me, and taking recourse to Yoga. in the form of even-mindedness, be solely devoted to Me and constantly give your mind to Me. 

सब कर्मों को मन से मुझमें अर्पण करके तथा समबुद्धि रूप योग को अवलम्बन करके मेरे परायण और निरन्तर मुझमें चित्त वाला हो ।।

श्री भगवद्गीता जी अध्याय 18, श्लोक 57।।

In my opinion,

इस अवस्था को प्राप्त हो जाना ही पौरुष पूर्ण पुरषार्थ है।

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🌹

Monday, June 20, 2022

गौतम से बुद्ध बोध तक

💐💐

गौतम को जिस रात बुद्धत्व संबोधि लगी, समाधि लगी, उस रात छः वर्ष तक अथक मेहनत करने के बाद उन्होंने सब मेहनत छोड़ दी थी। छः वर्ष तक उन्होंने बड़ी तपश्चर्या की, बड़ा योग साधा। शरीर को गला डाला, हड्डी-हड्डी रह गए। कहते हैं पेट पीठ से लग गया, चमड़ी सूख गयी, सारा जीवन-रस सूख गया; सिर्फ आंखें रह गई थीं। बुद्ध ने कहा है कि मेरी आंखें ऐसी रह गयी थीं, जैसे गरमी के दिनों में किसी गहरे कुएं में तुम देखो, थोड़ा-सा जल रह जाता है, गहरे अंधेरे में, ऐसे मेरी आंखें हो गयी थीं गङ्ढों में। ज़रा-सी चमक रह गयी थी। बस अब गया तब गया जैसी हालत थी। 

उस दिन स्नान करके निरंजना नदी से बाहर निकल रहे थे, वे इतने कमजोर हो गए थे कि निकल ही न सके। एक वृक्ष की जड़ को पकड़ कर अपने आप को संभाला, नहीं तो निरंजना में बह जाते। तब लटके हुए उन्हें खयाल आया कि यह मैं क्या कर रहा हूं? मैंने यह शरीर गला लिया; यह सब तरह का योग करके मैंने अपने को नष्ट कर लिया। मेरी हालत यह हो गई है कि यह छोटी-सी क्षीण धारा निरंजना की मैं पार नहीं कर सकता और भवसागर पार करने की सोच रहा हूं!

इससे उन्हें बड़ा बोध हुआ। बिजली कौंध गई। उन्होंने कहा ः यह मैंने क्या कर लिया! यह तो मेरी आत्मघात की प्रक्रिया हो गयी। मैं निरंजना नदी पार करने में असमर्थ हो गया, तो यह भवसागर मैं कैसे पार करूंगा! यह तो मुझसे कुछ गलती हो गयी।

उस सांझ उन्होंने सब छोड़ दिया। घर तो पहले ही छोड़ चुके थे, संसार पहले ही छोड़ चुके थे, राज-पाट सब पहले ही छोड़ चुके थे–उस संध्या उन्होंने त्याग, योग सब छोड़ दिया। भोग पहले छूट गया था, आज त्याग भी छोड़ दिया।  

एक सुजाता नामक स्त्री जिसके कुल का, वंश का कुछ पता नहीं था,उस सुजाता ने मनौती मनायी थी कि पूर्णिमा की रात फलां-फलां वृक्ष को–जहां वह सोचती थी देवता का वास है, गांव के लोग सोचते थे–खीर चढ़ाएगी। जब वह वहां पहुंची तो उसने बुद्ध को वहां बैठे देखा। उसने तो समझा कि वृक्ष का देवता प्रकट हुआ है। उसने खीर बुद्ध को चढ़ा दी। वह तो बड़ी धन्यभागी समझी अपने को। उसने तो वृक्ष के देवता को खीर चढ़ायी, लेकिन बुद्ध तो सब त्याग कर चुके थे तो उन्होंने खीर स्वीकार कर ली। और कोई दिन होता तो वे स्वीकार भी न करते। 

उनके पांच शिष्य थे, वे पांचों उनको छोड़कर चले गए–जब गुरु ने त्याग छोड़ दिया। उन्हें खीर स्वीकार कर और फिर ग्रहण करता  देख उनके शिष्य उन्हें छोड़कर चले गए। उन्होंने कहा: यह गौतम भ्रष्ट हो गया। 

उस रात बुद्ध बड़े निश्चिंत सोए। बुद्ध पहली दफा निश्चिंत सोए। न संसार बचा न मोक्ष बचा। कुछ पाना ही नहीं था तो अब चिंता क्या थी! चिंता तो पाने से पैदा होती है। जब पाना हो तो चिंता पैदा होती है।

उस रात कोई चिंता नहीं रही। मोक्ष की भी चिंता नहीं रही। बात ही छोड़ दी। बुद्ध ने कहा - यह सब फिजूल है। न यहां कुछ पाने को है, न वहां कुछ पाने को है। पाने को कुछ है ही नहीं। मैं नाहक ही दौड़ में परेशान हो रहा हूं। अब मैं चुपचाप सब यात्रा छोड़ देता हूं। निश्चिंत सोए। उस रात उन्होंने अपने जीवन को जीवन की धारा के साथ समर्पित कर दिया। धारा के साथ बहे; जैसे कोई आदमी तैरे न, और नदी में हाथ-पैर दे और नदी बहा ले चले। खूब गहरी नींद थी। सुबह आंख खुली और पाया कि समाधिस्थ हो गए।

गौतम से बुद्ध हो गए !!

ओशो संग्रह

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🌹


Sunday, June 19, 2022

समर्पण, पूर्ण समर्पण

Received this message ...

जिदंगी मे दो शब्द बहुत खास है:           

*प्रेम और ध्यान*

ये हमारे अस्तित्व के मंदिर के दो विराट दरवाजे हैं।

एक का नाम प्रेम, 

एक का नाम ध्यान।

चाहो तो प्रेम से प्रवेश कर जाओ, चाहो तो ध्यान से प्रवेश कर जाओ।

शर्त एक ही है :-

अहंकार दोनों में छोड़ना होगा।

How significant..

Exploring further on this found an article by Osho on the same...

Sharing herewith..alongside how I perceive the subject:-

As Osho explained in one of his lectures..... 

ध्यान का लक्ष्य मुक्ति है।            

प्रेम का लक्ष्य है आनंद।

यद्यपि मुक्ति और आनंद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिसको मुक्ति मिली, उसे आनंद भी मिलता है। और जिसे आनंद मिला, उसे मुक्ति भी मिलती है। यह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

लेकिन चूंकि ज्ञानी ध्यान की ही बात करता है और ध्यान के रास्ते से चलते-चलते धीरे-धीरे अपने को मुक्त करता है, इसीलिए जब मोक्ष का क्षण आता है तो वह मोक्ष को ही प्रथम व पूर्ण मानता है। स्वभावतः, उसके लिए आनंद गौण है, मोक्ष की छाया की तरह है उसके लिए आंनद।

ध्यानी मोक्ष के संबंध में वर्षों तक चिंतन करता है। वही सोचा, वही विचारा, वही ध्याना। उसके रग-रग रोएं-रोएं में बस एक ही पुकार है : स्वतंत्रता! स्वतंत्रता! स्वतंत्रता! जब परमात्मा के निकट आता है तो उसे जो उसने चाहा है, वह मिलता है। पर दूसरी बात भी मिलती है भेंट-स्वरूप, साथ-साथ; लेकिन जो उसने चाहा वह उसे दिखायी पड़ता है।स्वतंत्रता! मुक्ति। मोक्ष।

प्रेम भक्ति है।

और भक्त की पुकार है आनंद ! वियोग, संयोग, चिंतन, मनन ,रीत विधि,ध्यान,मुद्रा, चक्र भेद, सिद्धि-रिद्धि व भेद भाव से परे, वह बस एक प्रेमी है।

भक्त बस मस्त प्रेमी,सदैव आनंद उत्सव में कि मैं नाचूं, मगन होकर गाऊँ!  कितने दिन से पदों में घुंघरूं बांधकर नाच जारी है, नाचते गाते जनम जन्मांतर बीत गए। 

{ My reference point : ना जाने कितने युगों से भिन्न भिन्न जन्म लेकर श्री हरिदास जी निकुँज में अकेले बैठ कर सदियों प्रेम गीत गाते रहे अपने प्रिया प्रियतम को रिझाते रहे। }

बुद्ध कितने वर्ष ध्यान के तप में बैठे रहे और बिल्कुल मूर्ति की तरह! और रह गए–शांत, जब उनको परम घटना घटी। सात दिन तक कहते हैं, हिले नहीं,  डुले नहीं, बैठे ही रहे। देवता भी डर गए कि यह क्या इसी तरह समाप्त हो जाएंगे! देवताओं ने आकर चरण छुए, हिलाया-डुलाया और कहा कि महाराज, आप कुछ तो बोलें। इतनी-इतनी सदियों के बाद कभी कोई आदमी बुद्धत्व को उपलब्ध होता है, अनेक लोगों को लाभ होगा, आप कुछ बोलें, आप चुप क्यों बैठे हैं? सात दिन से हम प्रतीक्षा कर रहे हैं।

बुद्ध का मन बोलने का भी न था। बोलने में भी हल-चल हो जाएगी, थोड़ी गति हो जाएगी। बुद्ध तो ध्यानस्थ बैठे थे। वह ध्यान चुप्पी थी, वह चुप्पी हल चल शून्य थी, कंपन-रहित थी। 

यह ध्यान की पराकाष्ठा है। 

और मीरा को जब यही घटना घटी, तब वह नाची, खूब नाची,और आंखों ने अविरल आँसूओं की गंगा यमुना बहा कर परम् से मिलन अभिषेक कर लिया। 

{As how I c : और श्री हरिदास ने तो अपनी ही बात प्रेमपूर्वक मनवा भी ली और जगत को श्री बाँके बिहारी रूप में लाडली जी और लाडले के दर्श का मानव गण को युगों युगों तक का सौभग्य भी प्राप्त करा दिया। }

यह प्रेम की दिव्यता है।

क्या यह दोनों अलग-अलग घटनाएं घटीं? 

नहीं, ये दो अलग ढंग के व्यक्ति थे, घटना तो एक ही घटी।

And as I perceive..

एक का ध्यान का भाव रहा और एक का प्रेम का।

अगर कुछ common रहा तो उनका अहंकार रहित जीवन।

अगर कुछ common रहा तो उनका समर्पण भाव।

पात्रता का पहला नियम..... 

समपर्ण ,  ....                             

पूर्ण समर्पण !!

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹


Saturday, June 18, 2022

दसवां द्वार

Inspired by one of the messages from Amresh bhai which had a mention of "दसवाँ द्वार"..

Delving further into it, this is how I perceive the mention...

दो जन बाजार मे लड़ रहे थे। एक दूसरे को मार देने को तैयार, कुछ लोग उन्हें अलग कर रहे थे, तो उनके अपने अपने परिवार वाले दूसरे को भला बुरा कह कर अपने वाले को justify भी कर रहे थे which in turn was further provoking them too, though unintentionally, यूँ तो दोनों के घरवाले झगड़ा खत्म ही कराना चाहते थे पर अपने को ऊपर रख कर, अपने को सही बताकर। बस यहीं मुद्दा अड़ा था कौन ठीक ? और झगड़ा भयंकर रुप लेता जा रहा था।

कुछ पड़ोसी , दोस्त, अनजान लोग बीच बचाव कर रहे थे, कुछ मज़ा ले रहे थे, कुछ मूक दर्शक बने थे और कुछ ignorant से बैठे थे अपने घर, दुकान,छत, दरवाज़े या चाय की छपरी पर और बस देख रहे थे।

Do we relate to our everyday routine / life with this situation..?

No..not as a routine or on everyday basis, most of us will reply..

Wrong..

Let's see it this way now..

There is a lad/lass in the family who wishes to perform an act in their own way and we the grown ups with our age wise experience, are guiding them to do the same in another way which we deem right...and the issue continues...

(Of course one wants to experience and the other wishes to protect)

(further between Husband & wife this is almost the essence of marriage)🤣

Situation by situation...

Generation after Generation..

We all are, but one, out of the last category of people from the first story above...

And as I see this cosmically.. in our physical n mental system....

हम सब अपने नौ द्वारों पर अटके हैं और उन नौ द्वारों का झगड़ा चलता चला जा रहा है एक दूसरे से , लगातार, हर पल। दो लड़ते हैं तो बाकी sides लेते हैं, फिर कोई और सा द्वंद उठा , फिर कोई और ,यह जारी रहता हर दम हर पल, सोते जागते उठते बैठते, चलते खेलते, 24 घंटे।

हम नौ द्वारों के स्वामी हैं –आंख, कान, नाक, मुंह, जननेंद्रियां।

ये सब नौ नौकर हैं हमारे शरीर में। 

पर यह ही नौ नौकर हमारे मालिक बन जाते हैं और हमारे सारे सुख दुख इन्हीं नौ छेदों से भीतर आते जाते रहते हैं।

For example - 

इन द्वारों से कोई सुगंध अंदर आयी -अब बाकी इन्द्रियों ने ताना बाना बुनना शुरू कर दिया, कहाँ से, किसकी, कौन लाया, कैसे लाया, *हम कैसे इसे पाएं*? और जब लगता है नहीं पा सकते तो यही इन्द्रियों दूसरा राग अलापने लग जाती हैं, बुराई का, द्वेष का, ईर्ष्या का, या compete करने का, copy करने का। या competent enough personality नहीं है तो लाचारगी, बेचारगी, मजबूरी, भगवान को दोष या जैसी उसकी मर्जी का विचार फैलाने लगती हैं यह इंद्रिया।

और सब हर condition में एक दूसरे से लड़ भी रही होती हैं, though looks like working in unison..

नाक ने सुंघा, 

हो गया !!

सूंघ लिया !!

simply enjoy n be at peace...

But no..

नाक ने सूंघा,

आँखों ने कहा ढूंढो

कानों ने दिशा बताई

मुहँ ने पुकारा 

त्वचा में हरकत आई

और अब संग संग ही बाकी भीड़ लग गयी काम पर ! - "कर्मेन्द्रियां" और जब यह सब भी इसी झगड़े का हिस्सा बन गईं तब चारों अन्तरकर्ण- मन, बुद्धि , चित्त व अहंकार भी  जुट गए अपना अपना पक्ष रख खुद को important महसूस कराने में।

नौ द्वार , प्रपंच हज़ार!!

इन्हीं से हम संसार में डूबते जाते हैं।

बाहर निकलने का द्वार सिर्फ एक है–एक मात्र है, उसे ध्यान कहो, भक्ति कहो या जो भी नाम दो।

Which brings..

1.contentment in one self.. 

2.Wisdom to understand the cycle of this universe..

संतोष, बोध

या कहें - संतोष का बोध!

यह बोध हो जाना कि:-

गुण ही गुण में बरत रहे हैं, और हम सब मात्र ज़रिया हैं, instruments..

Gita 3.28-

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: ।

गुणा गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा न सज्जते ।।28।।

परंतु हे महाबाहो ! गुण विभाग और कर्म विभाग के तत्त्व को जानने वाला ज्ञानयोगी सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं, ऐसा समझकर उनमें आसक्त नहीं होता ।।

He, however, who has true insight into the respective spheres of gunas (modes of prakrti) and their action, holding that it is the gunas (in the shape of the senses, mind, etc.,) that move among the gunas (objects of perception), does not get attached to them, Arjuna.🙏🏻

बस ज़रूरत है तो अपने ही भीतर, अपने ही "दसवें द्वार" को खोजने की।

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🌹

Thursday, October 7, 2021

गिरधर नागर Girdhar Nagar

 *सखी भाव सवैया*
जित देखूँ दिखें हैं गोविंद, 
संग हैं राधा प्यारी, 
हर रूप में दर्शे श्यामा श्याम, 
रे सखी! 
मैं तो घणी दीवानी होइ। 
दुर्गा जपूँ, राम भजूँ,
चाहे लगाऊं शिव की धूनी,
हम रसिकों के तो बस गिरधर नागर, 
इसी रूप में पूजें हम हर कोई..

Oh Dear, 
Omni present is 
Govind with loving Radha,
 in every form 
we sight Shyama Shyam
 & are crazy for their love. 
We the rasik, 
belongs to Radha Krishn 
& in this mein of them only 
we worship all Gods, 
be it 
Durga, Ram & even Shiv..
🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Sunday, August 8, 2021

Transcedental reveries भावातीत ध्यान

 आकर्षण ऐसा
  *साजन सजनी* 
का मुझ पर, 
करुँ कुछ भी, 
स्पष्ट उजागर होय, 
आँख रचे, हर सांस बसे, 
यह चित्त पल पल 
*राधा-मोहन* 
ध्यान में खोये, 
रे सखी! 
नमन करुँ समस्त इंद्रियों से 
जीवन सफ़ल तब होये, 
*युगल सरकार* 
को भावातीत नमन... 

The fuscous of 
*Radha-Mohan* 
is palpable
 in all of my activities, 
limn in eyes, 
imbibed in each breathe, 
am ever in their reveries. 
Oh Dear! 
the purpose of life
 is achieved
 when we bow to them
 with all senses.
 Transcendental bow to 
*Couple Lord*

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Saturday, August 7, 2021

आपका तेज़, Your Grandeur

 नैन अश्रुपूरित,
 ज़बान में कम्पन, 
हाथों की लर्जिश, 
हदों से गुज़र रही है 
मोहब्बत तुम्हारी!
  *हे श्यामसुंदर,* 
आपका तेज़
  *किशोरी जी* 
में ही समा सकता है 
जिनकी आपके प्रति 
प्रीति की मात्रा ही नहीं।
ऐसे निश्छल पावन 
प्रेम संबंध को नमन

Teary eyes, 
jittery tongue, 
shaking hands, 
love for you 
is melding 
by leaps & bounds..
*Hey Shyam Sunder*
 it is the un-quantifying 
devotion of 
*Kishori ji* 
alone which can
 assimilate your grandeur..
Bow to the 
guileless, pious 
love relationship 
of yours

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Wednesday, August 4, 2021

दीवानी, Crazy

"सखी भाव सवैया":

प्रेम असीम 
मनमोहन का, 
राधा हैं कृपाकारी, 
रिमझिम रिमझिम बरसे 
हम पर
 इनकी प्रीत का पानी, 
रे सखी! 
बूझे ना, 
अब जाँ निसारूं 
या मन में बसा लूँ, 
मैं तो राधेश्याम दिवानी होरी। 
आपको दिवानगी भरा नमन

Abundantly loving is 
Manmohan
benevolent is 
Radha
blessing us by 
showering their love.
 Oh Dear! 
can't fathom, 
whether I bestow 
myself upon them 
or live engrossed 
in their love?
 I have gone crazy for 
RadheShyam..
frenzy full bow to you..

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Tuesday, August 3, 2021

Hook Line & Sinker दिलोंजान से

 *"सखी भाव सवैया"*
रे सखी, 
धारे त्रिभंगी मुद्रा
धरे मुरली अधरों पर, 
कांधे सिर राखे
  राधा प्यारी 
मोहक निर्मल पावन
  *राधामोहन*
छबि रचे यूँ, 
जा पर मैं दिलोजाँ वारी! 
आपको सम्मोहित भावपूर्ण नमन

Oh Dear! 
Skew formed
having flute on the lips, 
Radha 
leaning on his shoulder! 
this serene pious & 
heart soothing gesture of 
*RadhaMohan*
thus formed,
 makes me fall for them 
hook line & sinker! 
Elf-struck bow to you

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Monday, August 2, 2021

Effects & Glories, महिमा व प्रभाव

 जिस भी भाव से 
*प्रिया प्रियतम* 
लीला दर्शन देते हैं 
हम रसिक वही भाव 
शब्दों में चिन्हित कर देते हैं! 
यह महिमा तो *
राधा जी व उनके कन्हैया* 
की ही है व उनका ही प्रभाव है ! 
आपको आपके ही 
शब्द रस भाव से नमन।

In which ever emotion *
Priya Pritam*
grants us to sight their pageants, 
we the rasik's 
simply attribute the 
same in words. 
All the effect & glories 
belongs to
  *Radha ji & her Kanhiya*..
 Bow to you 
with the nectar of words 
generated by you yourself..

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Sunday, August 1, 2021

Oomph चुलबुल नखरीला पन

 रे सखी, 
श्यामसुंदर 
का प्रीत भरा चुलबुलापन 
और 
किशोरी जी 
का प्रेम युक्त नखरीलापन, 
इनके प्रीतमिलन पर निखार ले आता है
 व और भी मनभावन कर देता है। 
हमें इस लीला दर्शन का 
सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके लिये 
युगल सरकार के हमारे प्रति 
प्रेम को नमन

Oh Dear! 
Shyam Sunder's 
loveful umph 

Kishori ji's 
love filled oomph, 
makes the couple 
even more loveable
 & 
adds vibrant dimensions
 to their love relationship.
We bow to them
 for their love towards us 
for letting be a 
part of their pageants..

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹


Thursday, July 29, 2021

Union मिलन

 रे सखी! 
श्यामल रूप *श्याम* का 
सोहे स्वर्णिम *श्यामा* संग,  
रूप रंग रस का है यह
 धरा पर अद्धभुत मिलन! 
करते हैं हर्षोउल्लासित मन से
 हम आपको नमन, 
मन में बसी रहे 
यह छवि सदैव अविरल

Oh Dear! 
that swarthy shade of 
*Shyam* 
compliments golden skinned
  *Shyama..* 
it is the splendid union of
 beauty, charm & sentiments
in this universe..
Pray this mien shall be 
in our hearts incessantly.. 
with profound delightful heart 
bow to both of you all..

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Tuesday, July 27, 2021

Embodied सम्मलित

 आकर्षक, मनोहर,
 प्रफुल्लित प्रसन्नमुख, कोमल,
 *राधामोहन*, 
हम में ही सदैव सम्मलित,
 आपको अंतर्मन से नमन 

Magnificent,
alluring , radiant, svelte 
*RadhaMohan*
eternally embodied with in us,
 with inner consciousness 
bow to you..

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Sunday, July 25, 2021

Ephemeral क्षण भर

 रे मन , 
क्षण भर , 
जी भर , 
*श्री राधा व उनके कृष्ण* 
का ध्यान कर 
अपना जीवन सार्थक कर ले। 
हर जन इष्ट को सादर नमन

Dear Mind, 
just for an ephemeral, 
with complete dedication,
 devote yourself to
  *Shri Radha & her Krishn*
thereof making this life worth. 
In simplicity bow to the
 Lord of everyone.

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹


Thursday, July 22, 2021

Quintessential सर्वोत्कृष्ट

 सर्वोपरि *राधा मोहन*,
सर्वोच्च *कान्हा भान*
सर्वोत्कृष्ट *राधावल्लभ प्रेम*
आपको प्रेम भानपूर्ण प्रणाम !!

Supreme is
  *RadhaMohan*,
Paramount is
  *Krishna consciousness*,
 Quintessential is 
love relationship with 
*Radhavallabh*.. 
full of Consciousness,
 love filled bow to you..

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Thursday, July 15, 2021

Be One एकाकार

 रे सखी सुन! 
यह तन निज वन श्री कुँज, 
मन है गोलोक, 
नयन *श्यामा श्याम* की मधुर झांकी
 व हृदय *प्रिया प्रियतम* की सेज़! 
अपने में ही जो समाए हैं,
 सदैव अपने 
*राधेश्याम,* 
उन्हें निरवैर हो, 
निर्मल हो नमन कर 
व एकाकार हो जा!!

Listen my friend! 
This body is their arbour,
 mind is abode,
 eyes their glares 

*Radhe Shyam's*
throne to settle, is the heart. 
The one who are present
 with in us, our 
*shri Radheshyam,* 
remove all your malice, 
with Purity, 
bow to them 

become one with Lord

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹


Wednesday, July 14, 2021

Nitya Vihar नित्य विहार

 
रे मन! तू *प्रिया प्रियतम* 
की अनन्य भक्ति, रस्किन भांति, उपासना कर! 
प्रिया प्रियतम की समस्त सम्पति रूप, 
वयस, चातुर्य लीला धाम आदि की
 सर्वोत्कृष्टता के साथ प्रेम रस रंग से भरे
 नित्य बिहार का साक्षी बन जा। 
आपको सखी भावपूर्ण नमन।

Dear Heart! Pray the *
Couple Lord* 
as an exclusive devotee. 
The Couple Lord will embrace you 
to witness that level where a
 devotee can sight
 ‘Nitya Vihar’ with all the sweetness of their beauty,
 youthfulness, nectar & pageants. 
Devoted friendly bow to both of you all.


🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Tuesday, July 13, 2021

Purpose उद्देश्य

 मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य 
*श्री राधा के श्याम* 
का गुणगान करने से ही है।
  *राधावल्लभ* 
की ही छवि नैनों में समायी हुई है
 और हृदय में 
*बाँके*
का ही ध्यान बसा हुआ है। 
आपको समर्पित भाव से नमन

My purpose of life 
is to chant the glories of
  *Radha's Shyam*..
These eyes are engrossed 
with the vision of 
*Radhavallabh* 
and 
*Banke* 
is always
 swaying over my mind. 
Fully devoted bow to him

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Sunday, July 11, 2021

Excitement उमंग

 सखी! सुन कहूँ तोह से 
जो मन में उमंग ने छबि उभारी है! 
कुंज में निरत करत थिरक चलत, दिखत, प्यारे 
*श्री कुँज बिहारी हैं,* 
और लताओं की ओट से झाँके मुस्काते, 
दर्श दिए जिसने, कोमल सुखदायनी
  *राधा जी* 
हमारी हैँ। 
आपको सप्रेम प्रेमापूर्ण नमन।

Oh Dear, listen to what my
 heart has shown me in excitement ! 
 Jiving & Dancing in arbour is our 
*Dear Kunj Bihari* 
& smilingly peeping from the
 creepers is our blissful
  *Radha Rani.* 
Love to the loving couple..

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹

Thursday, July 8, 2021

Girdhar with Radha गिरधर संग राधा

 मोतियों की लटकन मुकुट, 
माथे चंदन टिका, 
अधरों धारे मुरली, 
कमर पीताम्बर साजा, 
बैठे हैं कुँज में 
अलबेले 
*गिरधर*, 
साथ विराजें
  *श्री राधा* !
नमन करूँ सीस नवा

Adorning pearls string coronet,
auspicious sandalwood paste on forehead, 
flute on lips, 
glowing yellow scarf
 tightened on his waist, 
buckish
 *Girdhar* 
is seated alongside
  *Shri Radha ji* 
at the arbour... 
Bow to gracious Couple Lord.

🌹🙏🏻राधे राधे🙏🏻🌹